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Njariyaa Badal Rha Kahani In Hindi नजरिया बदल रहा: आखिर ऐसा क्या हुआ अपर्णा के साथ? एटीट्यूड पर अनमोल कहानी - HindiShayariH

नजर जैसी नजरिया वैसा कहानी , दृष्टिकोण सुविचार, एटीट्यूड पर अनमोल कहानी  Njariyaa Badal Rha Kahani In Hindi, नजरिया बदल रहा: आखिर क्या हुआ अपर्णा के साथ? अपर्णा आधुनिक दुनिया में ज्यादा भरोसा करती थी. उसे दिखावा पसंद था.


डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’



Njariyaa Badal Rha Kahani In Hindi नजरिया बदल रहा: आखिर क्या हुआ अपर्णा के साथ?
नजरिया बदल रहा



अपर्णा आधुनिक युवती थी. ऊपरी चकाचौंध, हाई लाइफस्टाइल उसे आकर्षित करता था. तभी तो शीर्ष के साथ अमेरिका में बसने का सपना देखने लगी थी. लेकिन जब हकीकत की दुनिया में देखा तो… ‘‘देख अपर्णा, इधर आ जल्दी.’’ ‘‘क्या है मम्मा?’’ अपर्णा वीडियो पौज कर मोबाइल हाथ में लिए चली आई थी.

‘‘वह देख, पार्थ नीचे खड़ा अपने गमलों को कितने प्यार से पानी दे रहा है. सादे कपड़ों में भी कितना हैंडसम दिखता है.’’

अपर्णा ने मां रागिनी को घूर कर देखा. ‘‘यह देख, कितना हराभरा कर दिया है उस ने यह बगीचा. अभी आए कुल 2 महीने ही तो हुए हैं इन लोगों को यहां,’’ वह फुसफुसा कर बताए जा रही थी.



नजरिए का फर्क है – नजरिया अपना अपना

‘‘मम्मा, आप तो पीछे ही पड़ जाते हो. बस, कोई लड़का दिख जाना चाहिए आप को. उस की खूबियां गिनाने लग जाती हो. बोल दिया न, मु?ो नहीं करनी शादीवादी, वह भी एक सरकारी नौकरी वाले से कतई नहीं. शगुन दी की शादी की थी न सरकारी डाक्टर से. बेचारी आज तक वहीं बनारस में अटकी अस्पताल, मंदिर और घाटों के दर्शन कर रही हैं.’’

‘‘तेरी प्रौब्लम क्या है. स्मार्ट है, हैंडसम है पार्थ, दिल्ली विश्वविद्यालय में बौटनी का लैक्चरर है. उस का अपना घर है. उस पर से अकेला लड़का है, एक बहन है, बस.’’

‘‘हां, एक बहन है, जिस की शादी हो चुकी है. बड़े भले लोग हैं. पिता डिग्री कालेज में इंग्लिश के प्रोफैसर थे, रिटायर हो चुके हैं. मां स्कूल टीचर थीं, रिटायर हो चुकीं. अपनी ही जाति के हैं…और कुछ? मम्मा कितनी बार बताओगे मु?ो यही बातें,’’ वह खीझी सी एक सांस में सब बोल कर ही ठहरी थी और रागिनी को खींच कर अंदर ले आई थी.

‘‘अभीअभी नौकरी लगी है उस की, रिश्तों की भरमार है उस के लिए, कमला बहनजी बता रही थीं. कोई रुका थोड़े ही रहेगा तेरे लिए,’’ रागिनी ने कहा.


‘‘हां, तो किस ने कहा है रुकने के लिए. मैट्रिमोनियल में देखो, हजार मिलेंगे एक से एक, यूएस, इंग्लैंड में वैल सैटल्ड, हैंडसम लड़के. प्रिया, शिखा, रूबी, जया मेरी सारी खास सहेलियां कोई अमेरिका, आस्ट्रेलिया तो कोई कनाडा, लंदन की उड़ानें भर रही हैं या तैयारी में हैं. किसी की शादी हो चुकी है तो किसी की इंगेजमैंट. आप को तो मालूम है, प्रिया तो पिछले महीने ही शादी कर लंदन चली गई. मु?ो तो वर्ल्ड के बैस्ट प्लेस जाना है यूएसए, उस में भी न्यूयौर्क.’’

‘‘हम से इतनी दूर जाने की सोच रही है, अप्पू. तेरे और शगुन के अलावा कौन है हमारा. पास है तो शगुन कभीकभी आ जाती है. कभी हम भी मिल आते हैं. तू आसपास भारत में ही कोई ढूंढ़. तेरे लिए व हमारे लिए, यही सही रहेगा. शगुन तो सम?ादार है, सब संभालना जानती है. दुनियादारी का पता है उसे. तु?ो तो कुछ भी नहीं मालूम. बस, तेरे परीलोक जैसे सपने. मैट्रिमोनियल से अनजाने लोगों से रिश्ता कर तु?ो परदेस भेज दें, कुछ गड़बड़ हुई तो… न्यूज तो देखतीपढ़ती है न?’’

‘‘शीर्ष की तो याद होगी आप को, जो मेरे साथ बीएससी में था. जिस ने एक दिन हमें अपनी कार में लिफ्ट दी थी, आप का पैर मुड़ गया था मार्केट में, जोर की मोच आ गई थी आप को. इतने सालों बाद वह कुछ समय पहले अचानक मु?ो मौल में मिल गया था. उस की कंपनी उसे यूएस भेज रही है वह भी सीधा न्यूयौर्क. 3 साल का असाइनमैंट है. अपने पेरैंट्स को मना रहा था. वे नहीं चाहते कि जाए और यदि जाना ही है तो शादी कर के जाए. पर वह चला गया.

‘‘मु?ा से बोल रहा था. ‘वहीं कोई दूसरी कंपनी जौइन कर लूंगा. पागल हूं जो इतनी अच्छी जगह छोड़ इंडिया वापस रहने आऊंगा. हां, शादी जरूर भारत की लड़की से करूंगा ताकि घर का काम बढि़या हो सके और घर का खाना भी मिल सके. हाहा वह रुक कर हंसा था, फिर बोला. तब तक तुम अपनी पीएचडी पूरी कर लो. अगर वेट किया मेरा, तो शादी तुम्हीं से करूंगा. मेरी पहली पसंद तो तुम ही थीं. यह बात और है मैं ने कभी जाहिर नहीं किया.’ कह कर वह मुसकरा रहा था. मैं आप को बताने ही वाली थी.’’


‘‘अरे, तु?ो बना रहा है. वह भी कैसा लड़का है जैसे मांबाप से कोई मतलब नहीं, उन्हें भी ले जाने की बात कहता तो भी बात सम?ा आती. वह तेरी क्या कद्र करेगा.’’

‘‘नहीं मम्मा, फोन नंबर दिया है उस ने मु?ो, उस पर उस से मेरी कई बार बात भी हुई है. कई बार उस के फोन भी आ चुके हैं. उस ने प्रौमिस किया है, 6 महीनों में लौटने वाला है, तब आप सब से मिलेगा अपने मम्मीपापा के साथ, शादी की बात करने.’’

‘‘वाह, कब आएगा, कब बात करेगा. इतना ही था तो उन्हें हम से मिलवा कर क्यों नहीं गया? एक नंबर का फेंकू लगता है. पापा से बात करती हूं, ला, पता दे उस का. हम खुद ही जा कर उस के मांबाप से बात करते हैं.’’

‘‘मैं कभी घर नहीं गई उस के, न ही उस से कभी पता पूछा. शायद कालकाजी में घर है उस का.’’

‘‘कमाल है, घरपरिवार भी देखा नहीं. और इतना बड़ा फैसला ले लिया. सच में बच्चों वाला दिमाग है तेरा. कब आएगा, कब बात करेगा वह. 27 की हो चली है तू. धीरगंभीर स्थिर चित्त, पार्थ जैसा ही कोई संभाल सकता है तु?ो, जान रही हूं.’’ उन्हें कुछ इसी थीम पर गिरीश कर्नाड और शबाना आजमी की ‘स्वामी’ फिल्म याद हो आईर् थी. जिद्दी चंचल लड़की और गंभीर लड़का…

‘‘एक बार फिर अच्छी तरह सोच ले. फिर कहूंगी पार्थ तेरे लिए बिलकुल फिट है. वे लोग भी तु?ो पसंद करते हैं.’’

‘‘कहां हो भई दोनों मांबेटी. देखो कुमार के घर का बना गरम इडलीसांभर फिर दे गए और मेरी प्रिय मखाने की खीर भी. विश्व में बढ़ रहे करोना संकट के लिए टीवी पर प्रधानमंत्री क्या बोलते हैं. यहां भी लौकडाउन होना तो तय है.’’ पापा नंदन कुमार की आवाज पर दोनों टीवी रूम में चली आईं.

21 दिनों का लौकडाउन हुआ, फिर 19 दिनों का. सभी बताए नियमों का पालन कर रहे थे. पार्थ और अपर्णा की भी छुट्टी हो गईर् थी. तालीथाली, दीयाबत्ती अभियान में अपर्णा ने पूरी बिल्ंिडग में सब से अधिक जोरशोर से हिस्सा लिया. नीचे पार्थ के घर होहल्ला न सुन कर अपर्र्णा मुंह बिचकाती रही. जरा भी जज्बा नहीं देश के लिए. कैसा अजीब आदमी है, अकड़ू खां बना बैठा होगा कहीं, प्रवक्ता पार्थ. अंधेरे में अपनी उन किताबों में भी तो नहीं खो सकता इस समय. कुमार साहब ने दीप बाहर रख दिए थे, तो थाली वाले दिन मिसेज कुमार ने मंदिर की घंटी टुनटुना दी थी. बस, हो गया देशप्रेम. अपर्णा को खल रहा था. पार्थ तो वैसे भी कम ही बाहर निकलता. उसे यह सब बचकाना लगता. हां, सब्जीफल, दूध लाने के लिए जरूर जाता, मांपापा को जाने नहीं देता.


एक दिन कुमार फिर घर आए, बोले, ‘‘भाईसाहब, बहनजी, आप भी पार्थ से ही मंगा लिया कीजिए. आप क्यों जाएंगे, यह ही ले आया करेगा न. बुजुर्गों और छोटे बच्चों को ही ज्यादा खतरा है कोरोना से.’’

तो रागिनी ने घूमने को उतावली अपर्णा को सामान लाने के बहाने पार्थ के साथ भेज दिया. एक पंथ दो काज. शायद, पार्थ को पसंद ही करने लगे.

सामान ले कर अपर्णा पार्थ की कार में पहले ही आ बैठी. पार्थ अभी लाइन में था. तब तक उस ने शीर्ष को फोन लगा दिया. इतने दिनों से फोन लग नहीं रहा था. आज कौल कनैक्ट हो गई. तो उस ने शीर्ष की पूरी खबर ली. बहुत दिनों से फोन नहीं आया, न मिला तुम्हारा फोन. अधिक बिजी हो या मु?ो भूल गए. किसी और के चक्कर में तो नहीं पड़ गए. क्या हाल है वहां? न्यूज में तो तुम्हारा न्यूयौर्क सब से अधिक कोरोना की चपेट में है. दिल घबरा रहा था, और तुम हो कि फोन ही नहीं उठा रहे. तुम सेफ तो हो?’’

‘‘अरे, यहां सब मजे में हैं. छुट्टियां हो गई हैं. अपार्टमैंट से ही काम होता है औनलाइन. मु?ो क्या होना है. स्टैच्यू औफ लिबर्टी के साथ हूं. और तुम सब?’’

‘‘ठीक है सब. छुट्टियां यहां भी हो गई हैं. अच्छा, तुम्हारे पेरैंट्स तो ठीक हैं? कौन है उन के पास? कैसे कर रहे होंगे मैनेज. उन का घर का पता, फोन नंबर दो, तो कभी जरूरत पर मदद को परमिशन ले कर पहुंचा जा सकता है. मम्मा को सब बता दिया, वे मिलना भी चाहती हैं.’’

‘‘पापा की तो डेथ हो गई.’’

‘‘ओह, वैरी सैड ऐंड पेनफुल. कब? कैसे?’’

‘‘10 दिन तो हो ही गए, कोरोना से. मम्मी को भी आइसोलेशन में रखा गया है. रिश्तेदारों को भी जाने नहीं दे रहे. यहां से जाना ही पौसिबल नहीं था. सारी फ्लाइटें बंद. मामा लोग उन से फोन से कनैक्टेड हैं और मैं भी. क्या कर सकता हूं.’’


‘‘फिर क्या कह रहे थे, मैं मजे में हूं?’’

‘‘तो, मैं तो ठीक ही हूं. फादरमदर की वैसे भी उम्र थी ही, जाना तो वैसे भी था, फिर मैं इंडिया आ कर भी क्या कर लेता, न देख सकता न छू सकता. अच्छा है यहां सेफ हूं. कुछ हुआ तो बैस्ट इलाज हो जाएगा. चिल्ल… डोंट वरी फौर मी.’’

‘‘तुम अपने फादरमदर के लिए ही बोल रहे हो न?’’ अपर्णा को आश्चर्य हो रहा था. ऐसा निर्मोही, स्वार्थी बेटा कैसे हो सकता है? क्या फायदा ऐसे एडवांस शहर, ऊंचे स्तर और पैसों का जो ऐसे समय भी मांबाप के पास न रह सके, न आ सके और फिर उन के प्रति मन में ऐसी भावना रखे.

‘‘क्या सोचने लगी भई, कोई तुम्हें तो नहीं मिल गया? अरे दोचार महीनों की बात है. सबकुछ नौर्मल हो जाएगा. वैज्ञानिक लगे हुए हैं, दवावैक्सीन जल्द ही ढूंढ़ निकालेंगे ये लोग. शादी कर के तुम्हें भी यहां ले आऊंगा. फिर अपनी तो घरबाहर ऐश ही ऐश होगी. हाहा, ओके, औनलाइन काम का वक्त हो गया. रखता हूं, बहुत काम है. ट्वेंटी डेज से पहले कौल नहीं कर पाऊंगा. ओके, बाय, लव यू स्वीटहार्ट.’’ उस के फ्लाइंग किस के साथ ही फोन कट गया था.

अपर्णा इधरउधर देखने लगी, कहां रह गया पार्थ. वह भी जाने कितना सामान ले रहा है पागल सा. रोज ही तो आता है मार्केट, फिर भी. उस ने नजरें दूर घुमाईं तो पार्थ नजर आया. वह मास्क लगाए, गरीब बच्चों में दूध की थैली, केले, बिस्कुट और ब्रैड बांट रहा था. तभी किसी गरीब बूढ़ी महिला ने उस से हाथ जोड़े कुछ कहा तो वह फिर राशन की दुकान में घुस गया. लौट कर उस ने लाई आटेचावल की थैलियां महिला के सिर पर अपनी मदद से रखवा दीं. महिला ने हाथ जोड़ कर हाथ ऊपर उठाए तो अपर्णा सम?ा गई कि जरूर गरीब महिला उसे दुआएं दे रही है. अपना सामान ला कर पार्थ ने गाड़ी में रखा.


‘‘एक मिनट,’’ कह कर उस ने जा रहे ठेले से साग खरीदा और कूड़े में खाना ढूंढ़ती कमजोर गाय को खिला कर वापस चला आया, ‘‘सौरी, थोड़ा टाइम लग गया.’’

‘‘आप रोज ही ऐसे इतना सब…’’ वह हैरान थी. दिल भी भर आया था उस का.

‘‘इतनाउतना कुछ नहीं. बहुतथोड़ा ही कर पाता हूं. दुनिया की जरूरत के आगे यह तो नगण्य ही है.’’

अपर्णा ने पहली बार पार्थ के चेहरे को ध्यान से देखा था, ‘जज्बा भी, जज्बात भी और सुंदर, सही सोच भी, मतलब सोने जैसा दिल. शीर्ष के दिल, दुनिया से कितना अलग, निर्मल…शायद मम्मी सही ही कह रही थीं. मु?ो अब उन की ही बात मान लेनी चाहिए. नजरिया बदलने लगा था. उस ने एक बार ऊपर से नीचे किन्हीं खयालों में गुम ड्राइव करते पार्थ को देखा और मन ही मन मुसकरा उठी.



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