घर को याद करते हुए शेर
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन
- साक़ी फ़ारुक़ी
अब बनाएँ भी तो घर क्या होगा
घर वही था जिसे ढाया हम ने
- शफ़ी मंसूर
घर से हम घर तलक गए होंगे
अपने ही आप तक गए होंगे
- जौन एलिया
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
- राहत इंदौरी
शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठे
शाम आए और दिल के लिए कोई घर न हो
- अख़्तर उस्मान
कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दरमियाँ
घर कहीं गुम हो गया दीवार-ओ-दर के दरमियाँ
- मख़मूर सईदी
रात आएगी तो घर जाएँगे
लाख सिमटे हों बिखर जाएँगे
- प्रेम किरण
Ghar sher
पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है
वो सूखे फूल में ख़ुशबू जगाना चाहता है
- मुस्तफ़ा शहाब
घर से बाहर निकले हुए तो घर तक वापस आओ भी
जीवन ही जब घात में हो तो कहीं कहीं रुक जाओ भी
- इक़बाल मतीन
घर से निकले देर हुई है घर को लौट चलें
गूँगी रातें धूप कड़ी है घर को लौट चलें
- ज़ाहिद हसन चुग़ताई