ख्वाब सुनहरा रह जाएगा पोएट्री
धरा का धरा पर सब धरा रह जाएगा ,
वफा न की धरा से निरा रह जाएगा ।
उजड़ते , कराहते , सिसकते ये जंगल ,
दावानल में झुलसता सिरा रह जाएगा ।
धरती , अंबर , नभ चूमने को बेताब बुर्ज ,
कंक्रीट के कुकरमुत्ते सहरा रह जाएगा ।
उस खुदा की नेमत क्यों छेड़ते हैं लोग ,
आबोहवा का सब्ज ककहरा रह जाएगा ।
जो भी दिया उसने हमें भरपूर है दिया ,
ऊंची उड़ान का ख्वाब सुनहरा रह जाएगा ।
सुन लो जरा चेतावनी खामोशियों की तुम ,
' जल ही जीवन ' हरित मशवरा रह जाएगा ।
बुलंदियों की हवस , भेंट चढ़ रही प्रकृति ,
पंच तत्वों से रिक्त भूमि , कचरा रह जाएगा ।