कुछ उम्मीदें Hindi Poetry | कुछ उम्मीदें Read Hindi
कहते - कहते तुम रुक जाना
सुनते - सुनते खो जाऊं मैं
दो नयनों में प्रणय स्वप्न जब
बुनते - बुनते सो जाऊं मैं
तब मेरी पलकों के ऊपर
अपनी नींदें रख देना तुम
खोल हथेली मेरी उसमें
कुछ उम्मीदें रख देना तुम ।
धरती , अंबर , सूरज , तारों
का सुख हम मिलकर बांटेंगे
सावन , पतझर और बहारों
को भी खुशी - खुशी काटेंगे
इन आंखों से उन आंखों तक
फैली इक दुनिया रख देना
इक दुख की गठरी रख देना
मुट्ठीभर खुशियां रख देना
अधरों पर मुस्कानें रखते हुए
सुनो ये भूल न जाना थोड़ा गुस्सा ,
थोड़ा बचपन थोड़ी खीझें रख देना
तुम खोल हथेली मेरी उसमें
कुछ उम्मीदें रख देना तुम ।
एक हरा उपवन रख देना
दो खिलती कलियां रख देना
इस घर से उस घर तक
आती - जाती कुछ गलियां रख देना
रख देना कुछ वक्त चुराकर
अपनी कुछ घड़ियां रख देना
याद रहे मेरे हिस्से में दो दहलीजें रख देना
तुम खोल हथेली मेरी उसमें
कुछ उम्मीदें रख देना तुम