सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Sarkari Baba Zinda Baad Short Story In Hindi सरकारी बाबा जिन्दा बाद

 
 जनता सरकार की ओर से भूख की ओर से निराश हो जाती तो वह सरकारी तांत्रिक बाबाओं का मजे से सहारा लेती.





लाचार, त्रस्त जनता जब लाख जतन के बाद भी महंगाई से मुक्त नहीं हो पाई तो फिर उन्होंने तय किया कि किसी पंजीकृत बाबा से संपर्क स्थापित किया जाए. मगर यहां तो बाबा ही मालामाल हो गए और जनता सबकुछ खुली आंखों से देखती रही…

उस द्वीप में सरकार के विपक्ष की तरह महंगाई को भी लाख डरानेधमकाने के बाद भी जब वह न रुकी तो महंगाई से अधिक सरकार से हताश, निराश जनता ने यह तय किया कि क्यों न अब महंगाई को भगाने के लिए किसी पंजीकृत तांत्रिक बाबा का सहारा लिया जाए। कारण, जबजब उस द्वीप की सरकार जनता को भय से नजात दिलवाने में असफल रहती, तबतब भय भगाने के लिए किसी न किसी सरकारी तांत्रिक बाबा का सहारा ले लेती.

जबजब उस द्वीप की सरकार द्वीप से भ्रष्टाचार को भगाने में असमर्थ रहती, तबतब उस द्वीप की जनता द्वीप से भ्रष्टाचार को भगाने के लिए सरकारी तांत्रिक बाबा का ही सहारा लेती. जब भी उस द्वीप की जनता सरकार की ओर से भूख की ओर से निराश हो जाती तो वह सरकारी तांत्रिक बाबाओं का मजे से सहारा लेती.

उस द्वीप के ग्रेट सरकारी तांत्रिक बाबा ने जनता में यह प्रचार कर रखा था कि वे अपनी जादुई तंत्र विद्या से द्वीप से किसी को भी भगा सकते हैं। हर किस्म की बीमारी, महामारी को भी। कोरोना को भी उन्होंने अपने तंत्र विद्या से भगाया है और पिछली दफा बौर्डर पर से अपनी तंत्र विद्या के माध्यम से दुश्मनों को खदेड़ा भी था। सरकार जिस काम को नहीं कर सकती वे अपनी तंत्र विद्या से उस काम को पालथी मारे अपने मठ के हैडक्वाटर से आंखें मूंदे कर सकते हैं। औरों की तो छोड़ो, वे स्टौक ऐक्सचैंज तक को मजे से चला चलवा सकते हैं.

आखिर कुछ खोजबीन के बाद वे सरकारी तांत्रिक बाबा उस द्वीप की जनता को मिल ही गए। उन्हें जंतरमंतर पर बुलाया गया ताकि वे ढोंगी तंत्र विद्या से उस द्वीप की जनता को महंगाई से नजात दिलवा सकें.


उस द्वीप के सरकारी तांत्रिक बाबा जंतरमंतर पर पधारे तो उन्होंने कुरसी पर विराजते ही उस द्वीप की जनता से अपील की कि हे, मेरे द्वीप के महंगाई के मारो… अगर तुम सचमुच महंगाई से नजात पाना चाहते हो तो समस्त देशवासियों को जंतरमंतर पर यज्ञ करना होगा। मरते देशवासी क्या न करते। उस द्वीप के देशवासी उन के कहेनुसार तांत्रिक यज्ञ करने को राजी हो गए।

तब उन्होंने रेडियो पर अपने तंत्र की बात की, “महंगाई डायन को भगाने के लिए हर घर से चावल, आटा, दाल, तेल लाने होंगे। पूर्णाहुति के लिए पैट्रोल, डीजल लाना होगा…”

अब उस द्वीप की जनता परेशान। वह सरकार से मुफ्त में मिली दाल खुद खाए या यज्ञ के लिए ले जाए? मुफ्त में मिले चावल खुद खाए या यज्ञ के लिए ले जाए? मुफ्त में मिला आटा खुद खाए या फिर यज्ञ के लिए ले जाए? रोतेरोते पैट्रोल से अपने स्कूटर के पहियों की मालिश करे या तांत्रिक बाबा की टांगों की?

पर सवाल महंगाई डायन से नजात पाने का था। सो, अपनीअपनी परात का आटा, अपने पतीले के दालचावल, सिर में लगाने का सरसों का तेल ले कर सभी जंतरमंतर पर आ गए।

सवाल सरकार से नहीं, महंगाई से छुटकारा पाने का जो था। देखते ही देखते उस द्वीप की जनता के पेट से चुराए आटा, दाल, चावलों का वहां ढेर लग गया। सरकारी तांत्रिक बाबा ने उस में से ढेर सारा अपने अधर्म के बोरों में भरा और बाजार में उतार कर जम कर नोट कमाए। कुछ उन्होंने यज्ञ के लिए बचा लिया ताकि वे आसानी से जनता की आंखों में धूल झोंक सकें.

अखबारों में बड़ेबड़े विज्ञापन देने के बाद जंतरमंतर पर महंगाई डायन को भगाने के लिए यज्ञ शुरू हुआ। बड़ी सी हलुआ बनाने वाली कड़ाही में जनता को मुफ्त में मिले आटा, दाल, चावल, सरसों का तेल मिलाया गया। एक टांग पर खड़ी जनता भूखे पेट हंसती हुई सब देखती रही। गाय के गोबर के उपलों के नाम पर झोटे के गोबर के उपले लाए गए। तांत्रिक बाबा ने अपनी पैंट पर रेशम की धोती बांधी और सिंहासन पर जा विराजे, तो फिल्मी गानों की तर्ज पर जनता ने भजन गाने शुरू कर दिए। थालियां बजने लगीं, गिलास बजने लगे.

2 दिन तक महंगाई डायन को भगाने के लिए जंतरमंतर पर महंगाई डायन द्वीप छोड़ो यज्ञ होता रहा। मीडिया ने उसे पूरी कवरेज दी. घी की जगह यज्ञ में पैट्रोल, डीजल की आहुति दी जाती रही।

तीसरे दिन जब यज्ञ कथित तौर पर पूर्ण होने को आया तो सरकारी तांत्रिक बाबा ज्यों ही महंगाई डायन को वश में करने के लिए 4 नीबू काट उन को अग्नि में डालने लगे तो 2 दिनों से चिलचिलाती धूप में महंगाई डायन को प्रत्यक्ष भागते देखने की इच्छा से एक टांग पर खड़ा उस द्वीप का एक नागरिक जोर से चीखा,”बाबा…बाबा… यह क्या कर रहो हो?”

“चुप, महंगाई डायन को भगाने का यज्ञ अंतिम दौर में है। अरे, महंगाई के नाती नराधम, टोक दिया न… मेरा सारा प्रयास गुड़गोबर कर दिया। विघ्न, घोर विघ्न… अब इस द्वीप की जनता को महंगाई से कोई नहीं बचा सकता। मेरा गुरु भी नहीं। मेरे कठिन प्रयासों से भी जो अब महंगाई डायन न भागी तो इस के लिए मैं नहीं, इस द्वीप की जनता शतप्रतिशत जिम्मेदार होगी।”

“क्षमा बाबा, क्षमा… असल में क्या है न कि आप ने यज्ञ में जनता की रसोई के चावल जलाए, मैं चुप रहा। आप ने यज्ञ में जनता की रसोई के दाल जलाई, मैं चुप रहा। आप ने यज्ञ में जनता की रसोई का आटा जलाया, मैं फिर भी चुप रहा। आप ने यज्ञ में जनता की रसोई का तेल जलाया तो भी मैं चुप रहा। कारण, यह सब सरकार ने हम को मुफ्त दिया था। हमें खिलाने को नहीं, अपनी कुरसी बचाने को। हमारा कमाया तो था नहीं। इस मुफ्तामुफ्ती के चक्कर में हम सब एक ही छत के नीचे रहते भी अलगअलग हो गए हैं। जितने फैमिली मैंबर, उतरने ही राशन कार्ड। मुफ्त का राशन, जहां मन करे वहां कर बेटा भाषण। पर हे बाबा, याद रहे कि जिस द्वीप में जनता लालच में आ अपने हाथपांव चलाना बंद कर दे वह द्वीप बहुत जल्दी पंगु हो जाता है.

“जिस द्वीप की सरकार अपने सत्ताई स्वार्थ के लिए मुफ्त का भरे पेट वालों को भी खिलाने लग जाएं, वहां की जनता बहुत जल्द आलसी हो जाती है, बाबा। पर जब तुम यह नीबू जलाने लगे तो पता है, आजकल नीबू का क्या रेट चल रहा है?”

“सत्ताई बाबाओं को महंगाई से क्या लेनादेना नराधम?”

“पूरे ₹4 सौ किलोग्राम चले हैं बाबा… गरमी में किसी डिहाइड्रेशन वाले को इस का रस पिलाओ तो किसी की तो जान बचे बाबा,” पर जो सुने, वह सरकारी बाबा नहीं.



इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे