लाल बुझक्कड़ ,ऐसी कहानी है जो हम सबने बचपन में सुनी थी । कहानी तो नहीं बदली , पर समय के साथ लाल बुझक्कड़ बदल गया ।
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लाल बुझक्कड़ |
अब यह आपके आस - पास कहीं न कहीं खड़ा मिल जाता है , जो हाथी के पैर को हिरण के चक्के लगे पैर बता देता है । समय बदला तो लाल बुझक्कड़ के गांव वाले भी बदल गए हैं । सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस जमाने में सभी को सब कुछ पता रहता है , परंतु लाल बुझककड़ ठहरा नेता , तो जैसा वह बोले , वही सही । रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया ? इनका जवाब भी ऐसा रहता , जैसे इनके पुतिन काका ने इनसे पूछ करके ही मिसाइलें दागी हैं । सरकार ने क्या निर्णय लिया और उसका असर क्या होगा , इस पर तो इनकी मास्टरी रहती है । ऐसे लाल बुझक्कड़ मौसम के साथ अपना रंग भी बदल लेते हैं ।
जैसे ही चुनाव आते तो वे राजनीति के धुरंदर व्यक्ति बन जाते हैं । जैसे ही इनको कोई चुप कराने जाता या टोकता है तो इनको लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी बहुत याद आती है । बजट आता है तो पहुंचे हुए अर्थशास्त्री , कोई विवाद होता तो किसी का कसूर हो या न हो , उसके पीछे लग जाते । अपने थोथे ज्ञान के अपार भंडार के साथ ये बिल्कुल तैयार रहते हैं । कोई राय मांगे चाहे न मांगे , इनको अपनी राय देने से मतलब । ये जरा - सी देर में हाथी को हिरण और हिरण को चींटी बना देते हैं ।
आत्ममुग्ध लाल बुझक्कड़ केवल हां - हां सुनना चाहते हैं , कोई न कर दे तो चिढ़ जाते हैं । मैं भी बैठकर सोचता हूं कि कभी इनका मोबाइल खराब हो जाता होगा , या ये घर पर ही बैठ जाते होंगे तो बेचारे घरवालों को कितनी आफत होती होगी ? क्योंकि ये जब तक अपनी राय नहीं देते , इनका पेट दुखता होगा । घरवाले भी यही प्रार्थना करते होंगे कि कब इनका मोबाइल सुधरे या कब ये घर से बाहर निकलें और राष्ट्रीय - अंतराष्ट्रीय समस्याओं में उलझें ।