मुख्य फलां जी सौदेबाजी के तहत मुख्य अतिथि बनते हैं । दरअसल , वे मुख्य अतिथि बनने के एवज में अच्छा खासा अमाउंट आयोजक के हाथों में थमा देते हैं ।
मुख्य अतिथि की महिमा कहानी
वह शुरू से मुख्य अतिथि बनते रहे हैं । यूं कह सकते हैं कि मुख्य अतिथि होना उनकी पुरानी आदत रही है ... बचपन से ही । अतिरिक्त पैसा होने का लाभ बाल्यकाल से ही उन्हें मिलता रहा । पिता राजनीति में थे तो बेटा भी पिता के नक्शेकदम पर चल पड़ा और बच्चों के बीच भी मुख्य अतिथि वाले अंदाज में बैठने लगा । बड़ा हुआ तो राजनीति में आ गया । उसके बाद चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि भी बन गया । तब तो स्थायी रूप से मुख्य अतिथि होने लगा । जब कभी किसी संस्था को मुख्य अतिथि की जरूरत पड़ती तो लोग भागे - भागे फलां जी के पास पहुंच जाते ।
फला जी मुख्य अतिथि बनते और साथ ही एक अच्छा खासा अमाउंट आयोजक के हाथों में थमा देते । यही रहस्य था उनके मुख्य अतिथि बनते रहने का । वे सौदेबाजी के तहत मुख्य अतिथि बनते हैं , इस बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं । वह तो यही मानकर चलते रहे कि ये दुनिया का दस्तूर है । सब यही कर रहे हैं तो हम भी कर रहे हैं । इसमें नई बात क्या है ? ठिकाने और सयाने जी भी पैसा देकर अध्यक्षता करते हैं , तो मैं भी पैसे देकर मुख्य अतिथि क्यों न बनूं ।
सिलसिला लगातार चलता रहा , लेकिन कहते हैं न कि ' सब दिन होत न एक समान ' । एक दिन वह राजनीति से सेवानिवृत्त हो गए , यानी बुरी तरह पराजित होकर घर बैठ गए । मगर मुख्य अतिथि होने की ललक बनी रही । इधर आयोजकों की आवक कम होती गई क्योंकि अब फलां जी को पैसे देने में भी तकलीफ होने लगी । पहले सरकारी निधि से लोगों को उपकृत करते रहे । अब ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी तो आयोजकों से कहते कि फोकट में मुख्य अतिथि बनाना है तो बात करो । लोग सोचते हैं कि फोकट का मुख्य अतिथि बनाना है तो किसी विद्वान व्यक्ति को बनाया जाए , यह सोचकर लोग खिसक लेते ।
जब लोगों का आना एकदम से बंद हो गया तो फलां जी की आत्मा बेचैन होने लगी । उन्होंने गीत गुनगुनाया- ' दुनिया में आए हैं तो जीना ही पड़ेगा , अगर मुख्य अतिथि बनना है तो भुगतान करना ही पड़ेगा । उन्होंने कुछ संस्थाओं के लोगों को फोन करके बताया कि अगर आप मुझे मुख्य अतिथि के रूप में बुलाएंगे तो आयोजन का पूरा खर्चा मेरा रहेगा । इतना सुनते ही लोग गदगदा गए और उनको मुख्य अतिथि बनाकर अपना टेढ़ा उल्लू सीधा करने लगे । लेकिन अब फलां जी काफी बुजुर्ग हो गए थे , इसलिए स्मृति - भ्रम के शिकार भी हो जाया करते थे ।
परिणाम यह होता कि आयोजन किसी और विषय को लेकर होता और फलां जी का भाषण कुछ और हो जाता । लोगों का मनोरंजन होता लेकिन कोई खुलकर हंसता भी नहीं था , क्योंकि मुख्य अतिथि की इज्जत का सवाल था । पिछले दिनों पैसा लेकर सम्मान करने वाली एक संस्था ने फलां जी को कत्था चूना लगाकर . एक कार्यक्रम का चीफ गेस्ट बना लिया ।
प्रायोजित सम्मान समारोह होने के बाद बारी थी मुख्य अतिथि के उद्बोधन की , तो उन्होंने बोलना शुरू किया अहा ! बड़ा अच्छा आयोजन हो रहा है । यह कितना सुंदर भवन है । यहां की कुर्सियां भी कितनी खूबसूरत दिख रही हैं । दीवार का रंग भी बड़ा आकर्षक है । हमारे आयोजक महोदय ने जो शर्ट पहनी है , वह भी कितनी अच्छी लग रही है । पीछे बैठे भाई साहब मंद - मंद मुस्कुरा रहे हैं । लगता है मेरी बातें बहुत अच्छी लग रही हैं । धन्यवाद ! " फलाने जी ने सम्मान समारोह के बारे में कुछ नहीं कहा । इधर - उधर देखकर जो भी मन में आया , बोलते रहे । दर्शक मन - ही - मन हंस रहे थे आयोजक भी मजे ले रहे थे , पर गंभीर बने हुए थे , क्योंकि अगली बार फिर किसी आयोजन के लिए इनको ही तो मुख्य अतिथि बनाना था ।