विशाल और अवंतिका ने पहली मुलाकात के बाद चट मंगनी पट ब्याह कर लिया. लेकिन कुछ ही दिनों बाद दोनों को महसूस हुआ कि वे एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं. स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब अवंतिका ने विशाल की तेलशोधक कंपनी के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया. (न्यू कहानी अनोखी जोड़ी)
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दिल्ली की एक अदालत में विशाल अपनी मुसीबतों का बखान कर रहा था और इस में भी वह अपने को कठिनाइयों में घिरा पा रहा था, क्योंकि कहानी 8 वर्षों से चली आ रही थी.
विशाल मुंबई की एक मशहूर तेलशोधक कंपनी में अधिकारी था. किसी काम से दिल्ली आया तो चांदनी चौक में अवंतिका से मुलाकात हो गई…वह भी रात के 1 बजे.
खूबसूरत अवंतिका रात में सीढ़ी पर खड़ी हो कर दीवार पर ‘कांग्रेस गिराओ’ का एक चित्र बना रही थी. नीचे खड़ा विशाल उस की दस्तकारी को देख रहा था. तभी बड़ी तूलिका ने अवंतिका के हाथ से छूट कर विशाल के चेहरे को हरे रंग से भर दिया.
उस छोटी सी मुलाकात ने दोनों के दिलों को इस कदर बेचैन किया कि उन्होंने ‘चट मंगनी पट ब्याह’ कहावत को सच करने के लिए अगले ही दिन अदालत में जा कर अपने विवाह का पंजीकरण करवा लिया.
प्रेम में कई बार ऐसा भी होता है कि वह पारे की तरह जिस तेजी से ऊपर चढ़ता है उसी तेजी से नीचे भी उतर जाता है. अवंतिका के 2 कमरों के मकान में दोनों का पहला सप्ताह तो शयनकक्ष में बीता किंतु दूसरे सप्ताह जब जोश थोड़ा ठंडा हुआ तो विशाल को लगा कि उस से शादी करने में कुछ जल्दी हो गई है, क्योंकि अवंतिका का आचरण घरेलू औरत से हट कर था. नईनवेली पत्नी यदि पति व घर की परवा न कर अपनी क्रांतिकारी सक्रियता पर ही डटी रहे तो भला कौन पति सहन कर पाएगा.
विवाह के 10वें दिन से ही विवाद में घर के प्याले व तश्तरियां शहीद होने लगे तो स्थिति पर धैर्यपूर्वक विचार कर विशाल ने पत्नी को छोड़ना ही उचित समझा.
8 वर्ष बीत गए. इस बीच विशाल की कंपनी ने कई बार उसे शेखों से सौदा करने के लिए सऊदी अरब व कुवैत भेजा. अपनी वाक्पटुता व मेहनत से विशाल ने लाखों टन तेल का फायदा कंपनी को कराया तो कंपनी के मालिक मुंशी साहब बहुत खुश हुए और उसे तरक्की देने का निर्णय लिया, किंतु अफवाहों से उन्हें पता चला कि विशाल का पत्नी से तलाक होने वाला है. कंपनी के मालिक नहीं चाहते थे कि उन के किसी कर्मचारी का घर उजडे़. अत: विशाल के टूटते घर को बचाने के लिए उन्होंने उस के मित्र विवेक को इस काम पर लगाया कि वह इस संबंध विच्छेद को बचाए. जाहिर है कहीं न कहीं कंपनी की प्रतिष्ठा का सवाल भी इस से जुड़ा था.
विशाल से मिलते ही विवेक ने जब उस के तलाक की खबर पर चर्चा शुरू की तो वह तमक कर बोला, ‘‘यह किस बेवकूफ के दिमाग की उपज है.’’
‘‘खुद मुंशी साहब ने फरमान जारी किया है. प्रबंध परिषद चाहती है कि कंपनी के सब उच्चाधिकारी पारिवारिक सुखशांति से रहें, कंपनी की इज्जत बढ़ाएं.’’
‘‘क्या बेवकूफी का सिद्धांत है. कंपनी को अधिकारियों की निपुणता से मतलब है कि उन के बीवीबच्चों से?’’
‘‘भैया, वातानुकूलित बंगला, कंपनी की गाड़ी, नौकरचाकर आदि की सुविधा चाहते हो तो परिषद की बात माननी ही होगी. वार्षिक आम सभा में केवल 1 महीना ही बाकी है. तुम अवंतिका को ले कर आम बैठक में शक्ल दिखा देना, पद तुम्हारा हो जाएगा. बाद में जो चाहे करना.’’
‘‘अवंतिका इस छल से सहमत नहीं होगी…विवेक और मैं उसे मना नहीं सकता. औंधी खोपड़ी की जो है,’’ इतना कह कर विशाल अपने तलाक को अंतिम रूप देने के लिए निकल पड़ा.
अदालत में दोनों के वकील तलाक की शर्तों पर आपस में बहस करते रहे जबकि वे दोनों भीगी आंखों से एकदूसरे को देखते रहे. पुराना प्रेम फिर से दिल में उमड़ने लगा, बहस बीच में रोक दी गई क्योंकि जज उठ कर जा चुके थे. मुकदमे की अगली तारीख लगा दी गई.
अदालत के बाहर बारिश हो रही थी. एक टैक्सी दिखाई दी तो विशाल ने उसे रोका. अवंतिका का हाथ भी उठा हुआ था. दोनों बैठ गए. रास्ते में बातें शुरू हुईं:
‘‘क्या करती हो आजकल?’’
‘‘ड्रेस डिजाइनिंग की एक कंपनी में काम करती हूं और सामाजिक सेवा के कार्यक्रमों से भी जुड़ी हूं…जैसे पहले करती थी.’’
‘‘अच्छा, किस के साथ?’’
‘‘हेमंतजी के साथ. वह मेरे अधिकारी भी हैं. वैसे तो उन से मेरी शादी भी होने वाली थी किंतु अचानक तुम मिले और मेरे दिलोदिमाग पर छा गए. याद है न तुम्हें?’’
‘‘कैसे भूल सकता हूं उन हसीन पलों को,’’ विशाल पुरानी यादों में खो गया. फिर बोला, ‘‘तुम अभी भी उसी घर में रहती हो?’’
‘‘हां.’’
घर आया तो टैक्सी से उतरते हुए अवंतिका बोली, ‘‘चाय पी कर जाना.’’
‘‘तुम कहती हो तो जरूर पीऊंगा. तुम्हारे हाथ की अदरक वाली चाय पिए हुए 8 वर्ष हो गए हैं.’’
चाय तो क्या पी विशाल ने वह रात भी वहीं बिताई और वह भी एकदूसरे की बांहों में. आखिर पतिपत्नी तो वे थे ही. तलाक तो अभी हुआ नहीं था.
सुबह उठे तो दोनों में दांपत्य का खुमार जोरों पर था. पत्नी को बांहों में लेते हुए विशाल बोला, ‘‘अब अकेले नहीं रहेंगे. तलाक को मारो गोली.’’
अवंतिका ने भी सिर हिला कर हामी भर दी.
‘‘अगर हम बेवकूफी न करते तो अभी तक हमारे घर में 2-3 बच्चे होते. खैर, कोई बात नहीं…अब सही. क्यों?’’ विशाल बोला.
‘‘बिलकुल,’’ अवंतिका ने जवाब दिया, ‘‘अब पारिवारिक सुख रहेगा, श्री और श्रीमती विशाल स्वरूप और उन के रोतेठुनकते बच्चे, बच्चों के स्कूल टीचरों की चमचागीरी आदि. क्यों प्रिये, तुम घबरा तो नहीं गए?’’
‘‘घबराऊं और वह भी जब तुम्हारा साथ रहे? नामुमकिन.’’
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वह उठ कर दूसरे कमरे में पहुंचा तो अवंतिका के पलंग पर नारी का खुशबूदार बदन था. अंधेरे में चादर उठा कर जब विशाल उस में घुसा तो वह चीखी. उसे छोड़ कर जब विशाल अपने बिस्तर में फिर घुसा तो हेमंत ने करवट बदली और विशाल के मुंह पर हाथ फेर धीरे से बोला, ‘‘तुम्हें ठंड तो नहीं लग रही है, प्रिये.’’
गुस्से में विशाल को भी हंसी आ गई. जोर से बोला, ‘‘नहीं, प्रिये.’’
हेमंत मुसकरा दिया.
सुबह हेमंत ने उस की कंपनी की खूब प्रशंसा की, ‘‘अवश्य तुम्हारी पदोन्नति होगी. किंतु क्या अवंतिका एक लायक पत्नी साबित होगी? वह तो हर आंदोलन में अगुआ बन नारे लगाने वालों में मिल जाती है. क्यों?’’
‘‘वह मेरी पत्नी है और मैं उस से प्रेम करता हूं. वह जो चाहे करे, मुझे कोई भी आपत्ति नहीं होगी. चाहे बिकनी पहने हुए भी नारे लगाए.’’
हेमंत की आंखें चमक गईं, ‘‘तुम्हारी कंपनी के खिलाफ भी?’’
विशाल ने जवाब नहीं दिया.
हेमंत आगे बढ़ा, ‘‘आज शाम हमारी बैठक होगी. तुम अवश्य आना. उस में तुम्हारा निजी हित होगा.’’
शाम को हेमंत ने सभा को संबोधित किया, ‘‘सज्जनो, आप को जान कर खुशी होगी कि आज मुंबई की एक बड़ी तेल कंपनी के उच्च पदाधिकारी विशालजी हमारे साथ हैं जो अपने नाम को सार्थक करते हुए विशाल हृदय रखते हैं और उन्होंने अपनी पत्नी अवंतिका को अनुमति दे दी है कि वह हमारे इस आंदोलन में केवल बिकनी पहन कर कलाकेंद्र के खिलाफ आवाज उठाएं. क्या आप लोग मेरे साथ हैं?’’
सब ने हाथ उठा कर आवाज लगाई, ‘‘जी, हां.’’
अवंतिका घबरा गई. इतना साहसिक कदम तोउस ने सोचा ही न था. समाचारपत्र क्या लिखेंगे, क्या दिखाएंगे?
अवंतिका को लगा कि विशाल को नीचा दिखाने के लिए यह हेमंत की कोई चाल है इसलिए वह बोली, ‘‘हेमंत, तुम्हारा बड़ा तुच्छ विचार था. मैं विशाल से सलाह लूंगी. अगर उसे अच्छा न लगा तो मुझे भूल जाना.’’
विशाल ने सीधे आफिस पहुंच कर विवेक को जब आंदोलन के बारे में समय और जगह बताई तो वह चकरा गया, क्योंकि उसी समय मुंशी साहब पत्नी समेत दिल्ली एक बैठक में भाग लेने आ रहे थे. दोनों मित्रों ने दिमाग दौड़ाए. समाचारपत्र के ऊपरी पृष्ठ पर ताजा समाचार था कि अंतर्राष्ट्रीय संघ के 2 अफसरों की तेल के दाम के सिलसिले में इटली के सिसली प्रांत में माफिया वालों ने हत्या कर दी. विशाल को एक विचार आया और उस ने विवेक को उस के बारे में बताया.
शाम को विशाल जब अवंतिका के साथ बैठा था तभी फोन आया. फोन विवेक ने किया था. विशाल ने नाटक शुरू किया, ‘‘मुंशी साहब, आप ने तो 30 दिन अवकाश का वचन दिया था और अब आप कल ही मुझे सिसली जाने को कह रहे हैं. क्या…क्या…प्रधानमंत्री के आफिस से हुक्म आया है? जी, जी…तब तो जाना ही पड़ेगा. वैसे मैं इतना होनहार तो नहीं हूं, आप मुझे कुछ अधिक ही योग्यता प्रदान कर रहे हैं. ठीक है साहब, कागजात भिजवा दीजिएगा.’’
अवंतिका विशाल का चेहरा देख चिंतित हो गई, ‘‘यह तुम्हें कहां भेजा जा रहा है…सिसली…मना कर दो. वहां तो जान का खतरा है.’’
घड़ी पर निगाह पड़ी तो विशाल बोला, ‘‘अरे, घंटे भर में मुझे आफिस पहुंचना है. अवंतिका प्लीज, मेरे स्नान के लिए पानी गरम कर दो.’’
अवंतिका जैसे ही रसोई में पानी गरम करने गई विशाल ने विवेक को फोन लगाया, ‘‘यार, मैं अवंतिका के घर से बोल रहा हूं. वह मान गई है और हमारे घर की बगिया में फिर से बहार आ गई है.’’
विशाल कपडे़ पहन कर बाहर निकला तो देखा अवंतिका फोन पर किसी से बात कर रही थी, ‘‘नहीं पल्लवी, आज मैं हड़ताल में नारे लगाने नहीं आऊंगी, क्योंकि वहां पुलिस मुझे गिरफ्तार कर सकती है और आज मेरे लिए बहुत अहम दिन है.’’
विशाल पूछ बैठा, ‘‘अवंतिका, यह गिरफ्तार होने का क्या मामला है?’’
‘‘बात यह है विशाल कि बड़ी तेल कंपनियां अपने उत्पाद का दाम बढ़ाए जा रही हैं…मुझे इस के विरुद्ध हड़ताल करने वालों का साथ देना था.’’
‘‘क्या बेवकूफी की बातें करती हो. आखिर तेल कंपनियों को भी तो कमाना है, और अगर जनता कीमत दे सकती है तो वे दाम क्यों न बढ़ाएं?’’
‘‘मिस्टर, मुझे अर्थशास्त्र नहीं सिखाओ,’’ गुस्से में अवंतिका बोली और एक प्लेट उठाई तो वार से बचने के लिए विशाल सीढि़यों से नीचे दौड़ पड़ा.
‘‘नमस्कारम्,’’ विशाल को देख हेमंत मुसकराया.
उधर विशाल की तरफ प्लेट फेंकते हुए अवंतिका चीखी, ‘‘निकल जाओ मेरे घर से.’’
आफिस पहुंचते ही विशाल ने विवेक को बताया, ‘‘अभी मैं ने फोन पर जो कहा था वह भूल जाओ. उस बेवकूफ की औंधी खोपड़ी अभी भी वैसी ही है. ऐसी नकचढ़ी युवती के साथ मैं नहीं रह सकता.’’
विवेक फोन पर बात कर रहा था. उस ने चोगा विशाल को थमा दिया और फुसफुसाया, ‘‘मुंशी साहब.’’
मुंशी साहब का फोन कान से लगाने के बाद विशाल के मुंह से केवल ये शब्द ही निकले, ‘जी हां सर,’ ‘बहुत अच्छा सर,’ ‘बिलकुल ठीक सर’ और ‘धन्यवाद सर.’
फोन रख कर विशाल ने ठंडी सांस ली, ‘‘अंतर्राष्ट्रीय शाखा का प्रबंधक होने का मतलब जानते हो विवेक. लंदन, पेरिस व रोम में अब मेरा आफिस होगा. निजी वायुयान, वर्ष में डेढ़ महीने की छुट्टी. कंपनी के खर्चे पर दुनिया घूमने का अवसर. मुंशी साहब ने तो छप्पर फाड़ कर मेरी झोली भर दी.’’
विवेक हंस पड़ा, ‘‘अब बीवी का क्या होगा?’’
‘‘तुम चिंता न करो. उस बेवकूफ को मना लूंगा. वार्षिक आम सभा में कितने दिन बाकी हैं?’’
‘‘10 दिन.’’
आफिस से विशाल टैक्सी ले कर सीधे अवंतिका के घर की ओर भागा. देखा, वह एक टैक्सी पर सवार हो कर कहीं जा रही थी. उस ने अपने टैक्सी चालक के सामने 500 का नोट रखते हुए कहा, ‘‘भैया, वह जो टैक्सी गई है उसे पकड़ना है.’’
अवंतिका की टैक्सी हवाई अड्डे की ओर दौड़ रही थी. विशाल ने सोचा, जरूर वह तलाक लेने विदेश जा रही है. तभी हवाई अड्डे के पास की बत्ती लाल हो गई और दोनों टैक्सियां एकदूसरे के आगेपीछे रुकीं. विशाल उतर कर दौड़ा और अवंतिका का हाथ थाम लिया, ‘‘डार्लिंग, तुम्हें जो करना है करो. मैं कभी तुम्हें रोकूंगा नहीं, क्योंकि तुम से प्रेम जो करता हूं.’’
अवंतिका भी अपनी टैक्सी से उतरी और उस की बांहों में समा गई. बाद में वे दोनों वापस अपने आशियाने की ओर चल पडे़. विशाल ने विवेक को फोन किया, ‘‘भाई, किला फतह हो गया.’’
राह में अवंतिका ने समझाया, ‘‘विशाल, अभी हम दोनों को अपना प्रेम मजबूत करना है इसलिए मैं तुम से अलग दूसरे कमरे में सोती हूं.’’
विशाल क्या करता. चुपचाप मान गया.
सभा में देर हो गई, रात ठंडी थी और गजब का कोहरा था. चूंकि अवंतिका का घर पास में था इसलिए उस ने अपने साथियों को रात बिताने को अपने घर बुला लिया.
रात में बिस्तर में जब विशाल ने करवट बदली तो एक बदन से हाथ टकरा गया. सोचा, अवंतिका का दिल द्रवित हो गया होगा और पास आ कर सो गई होगी. जब मुंह पर हाथ फेरा तो बढ़ी हुई दाढ़ी मिली. बत्ती जलाई तो देखा हेमंत साहब आराम से खर्राटे ले रहे हैं.
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विशाल उसे सांत्वना दे ही रहा था कि विवेक ने प्रवेश किया, ‘‘मैं कान्फिडेंशल सेल से आया हं. यह कागजात, पिस्तौल और साइनाइट की टिकिया है. और हां, ये 2 टिकिट रोम के हैं. अंतिम जानकारी वहां दी जाएगी.’’
विवेक के जाने के बाद विशाल ने समझाया कि रोम तक वह भी चल सकती है तो अवंतिका मान गई.
हेमंत ने विवेक को अवंतिका के घर से निकलते देखा तो उसे कुछ शक हुआ और थोड़ी दूर पर विवेक को पकड़ कर बोला, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के गुप्तचर विभाग से हूं. यह विशाल क्यों आंदोलनकर्ताओं से मिल रहा है? बताओ...वरना...’’ और हेमंत की घुड़की काम कर गई. विवेक ने पूरी कहानी उगल दी.
हवाई अड्डे से अब मुंशी दंपती निकल रहे थे तो विशाल और अवंतिका दिखाई दिए. विशाल ने अवंतिका को वहीं रुकने को कह कर मुंशी साहब का अभिनंदन किया, ‘‘साहब, श्रीमतीजी की मां मौत के मुंह में हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है.’’
उधर हेमंत ने मौका मिलते ही अवंतिका को विशाल की झूठ पर आधारित पूरी योजना समझा दी. फिर क्या था, गुस्से से लाल होते हुए उस ने विशाल को परची लिखी, ‘‘माफ करना, मैं रोम नहीं जा सकती. आंदोलन में भाग लेना है. तुम चाहो तो साइनाइड की टिकिया खा सकते हो.’’
मुंशी दंपती और विवेक सभा भवन के पास पहुंच रहे थे कि देखा बिकनी पहने एक महिला घोड़े पर सवार है और विशाल उस से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. हेमंत व पुलिस के 2 सिपाही उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. विशाल को जब तीनों ने दबोचा तो संवाददाताओं व फोटोग्राफरों ने अपनेअपने कार्य मुस्तैदी से किए.