Asghar Gondvi Desi Sher: 'असगर गोंडवी' के 10 चुनिंदा शेर
जीना भी आ गया मुझे मरना भी आ गया
पहचानने लगा हूँ तुम्हारी नज़र को मैं
पहली नज़र भी आप की उफ़ किस बला की थी
हम आज तक वो चोट हैं दिल पर लिए हुए
होता है राज़-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत इन्हीं से फ़ाश
आँखें ज़बाँ नहीं हैं मगर बे-ज़बाँ नहीं
इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी
नीची नज़रों में क्या नहीं होता
ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
हाए वो शाम अब कहाँ हाए वो अब सहर कहाँ
मैं क्या कहूँ कहाँ है मोहब्बत कहाँ नहीं
रग रग में दौड़ी फिरती है नश्तर लिए हुए
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
कौन सा सेहर तिरी चश्म-ए-इनायत में नहीं
वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
कली की आँख खुल जाए चमन बेदार हो जाए
रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स में
जैसे कभी आँखों से गुलिस्ताँ नहीं देखा
क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
आँख झपकी क़ैस की और सामने महमिल न था