नवयुग की नारी Poesy
रजनी पाण्डेय
नवयुग के निर्माण में
नारी भी कुछ योगदान दें ,
कुछ नव करें , नूतन करें
संसार को संवार दें ।
नवीन संतति के लिए एक
नई दुनिया रचें ,
मात्र सभ्य दिखें नहीं ,
सभ्य संस्कृति भी गढ़ें ।
आधुनिकता को महज
वस्त्रों से साबित न करें ,
कार्य और विचार में भी
आधुनिक कुछ हम बनें ।
संस्कृति के नाम पर
जाति , धर्म चाहे न दें ,
पर नई पीढ़ी को हम ,
संस्कार से सिंचित करें ।
भेद न संतति में हो , बेटी
अजन्मी न रहें ,
बेटे को ये संस्कार दें ,
बेटी भी निर्भय जी सकें ।
अब न अपनी बेटियां
सड़कों पे चलने से डरें ,
उनका भी तो सम्मान है ,
हर मां ये बेटों से कहे ।
प्रथम गुरु जननी है ,
जो जब स्वयं आगे आएगी ,
बेटे को सुसंस्कार दे मां
का फर्ज निभाएगी ।
जब हर मां बेटों के मन
में बेटी का मान जगाएगी ,
उस दिन वह नारी मां नहीं ,
मो जगदंबा कहलाएगी ।