निर्णय हिंदी कहानी कल संस्थान में बच्चों की काव्य प्रतियोगिता आयोजित की गई है, जिसमें जिले के सभी स्कूलों के विद्यार्थी प्रतिभागी हैं।
किरण सिंह
"हे "जी, आप सीमा जी बोल रही हैं? मैं
लो!" हिंदी उन्नयन संस्थान से बोल रहा हूँ। कल संस्थान में बच्चों की काव्य प्रतियोगिता आयोजित की गई है, जिसमें जिले के सभी स्कूलों के विद्यार्थी प्रतिभागी हैं। आपको हम उस प्रतियोगिता के निर्णायक की भूमिका के लिए सादर आमंत्रित कर रहे हैं। क्या आपकी सहमति है?" "जी, कल तो एक अन्य आयोजन में जाना है। लेकिन चूंकि बच्चों की काव्य प्रतियोगिता की बात है तो मैं मैनेज करती है।" "जी, शुक्रिया!"
सीमा जी बच्चों की काव्य प्रतियोगिता को लेकर बहुत उत्साहित थीं, क्योंकि वह अच्छी तरह समझती थीं कि बच्चे ही हमारी साहित्यिक धरोहर के उत्तराधिकारी हैं, इसलिए हिंदी के उत्थान में निर्णायकों की भूमिका अहम है। सीमा जी वैसे भी अपने हरेक कार्य में ईमानदारी बरतती थीं, इसलिए भी साहित्य जगत में उनका एक अलग स्थान था। कवि गोष्ठी में सभी बच्चे एक से एक प्रस्तुति देकर निर्णायकों को धर्म संकट में डाल रहे थे। फिर भी सभी निर्णायक अपनी समझ से प्रतियोगियों को अंक दे रहे थे तभी निर्णायकों को चाय-नाश्ता के साथ-साथ एक पर्ची थमाई गई, जिसमे प्रतियोगियों का अंक और क्रम (प्रथम, द्वितीय, तृतीय) लिखा था और उसी के आधार पर निर्णय देना था। सीमा जी की आत्मा इस निर्णय के लिए गवाही नहीं दे रही थी । सीमा जी ने अपनी आत्मा की आवाज सुनी और उन्होंने अपने बगल में बैठे हुए संस्था के अध्यक्ष को एक पर्ची थमाई, जिसमें उन्होंने अपनी समझ के अनुसार विजेताओं की घोषणा करते हुए लिखा था- "बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं। कम से कम इनके लिए तो हमें ईमानदारी बरतनी चाहिए।"
अध्यक्ष महोदय का चेहरा लाल-पीला हो रहा था, लेकिन वह उस समय विवश थे। इसलिए सीमा जी का निर्णय मानना पड़ा, किंतु आगे से उस संस्था के किसी भी आयोजन में सीमा जी को आमंत्रित नहीं किया गया।