हिंदी कहानी व्यंग्य: मैं और मच्छर
मच्छरों के विषय में यह सर्वविदित है कि वह हमला करने से पूर्व अपने होने या आने की सूचना देते हैं जैसे युद्ध शुरू होने से पूर्व शंख बजाया जाता है.
मच्छरों के विषय में यह सर्वविदित है कि वह हमला करने से पूर्व अपने होने या आने की सूचना देते हैं जैसे युद्ध शुरू होने से पूर्व शंख बजाया जाता है.
मैं और मच्छर
कल मुझे कान के डाक्टर के पास जाने की सख्त आवश्यकता महसूस हुई. हुआ यों था कि कल शाम को
गलती से मेरे कमरे की खिड़कियां खुली रह गईं. इस कारण पूरे कमरे में मच्छरों का साम्राज्य हो गया. कमरे में जब मैं ‘मच्छर की आत्मकथा’ कविता पढ़ रहा था, तभी मच्छरों के दल ने मेरे शरीर के खुले हिस्सों पर हमला बोल दिया. कुछ पैर में काट रहे थे तो कुछ हाथ में काटने को तत्पर थे, पर कुछ ऐसे भी थे जो मेरे कान पर भी बैठ कर हमला बोल रहे थे, लेकिन मुझे भनक तक नहीं लग रही थी.
मच्छरों के विषय में यह सर्वविदित है कि वह हमला करने से पूर्व अपने होने या आने की सूचना देते हैं जैसे युद्ध शुरू होने से पूर्व शंख बजाया जाता है. लेकिन कल मुझे ताज्जुब हुआ जब मच्छरों की आवाज मुझे सुनाई ही नहीं दी जबकि मुझे कान में चुभन महसूस हो रही थी.
मैं ने कविता पढ़ना छोड़ कर मच्छरों की आवाज पर ध्यान केंद्रित किया, पर तब भी मुझे मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ी. अब मुझे न तो मच्छरों के काटने की चिंता थी और न ही मुझे मच्छरों को भगाने की. अब मुझे चिंता खाए जा रही थी कि क्या ध्वनि प्रदूषण के असर से मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ रही है या मेरे कानों में कोई खराबी आ गई है या फिर आजकल मच्छरों ने भिनभिनाना ही बंद कर दिया है?
कल मुझे कान के डाक्टर के पास जाने की सख्त आवश्यकता महसूस हुई. हुआ यों था कि कल शाम को
गलती से मेरे कमरे की खिड़कियां खुली रह गईं. इस कारण पूरे कमरे में मच्छरों का साम्राज्य हो गया. कमरे में जब मैं ‘मच्छर की आत्मकथा’ कविता पढ़ रहा था, तभी मच्छरों के दल ने मेरे शरीर के खुले हिस्सों पर हमला बोल दिया. कुछ पैर में काट रहे थे तो कुछ हाथ में काटने को तत्पर थे, पर कुछ ऐसे भी थे जो मेरे कान पर भी बैठ कर हमला बोल रहे थे, लेकिन मुझे भनक तक नहीं लग रही थी.
मच्छरों के विषय में यह सर्वविदित है कि वह हमला करने से पूर्व अपने होने या आने की सूचना देते हैं जैसे युद्ध शुरू होने से पूर्व शंख बजाया जाता है. लेकिन कल मुझे ताज्जुब हुआ जब मच्छरों की आवाज मुझे सुनाई ही नहीं दी जबकि मुझे कान में चुभन महसूस हो रही थी.
मैं ने कविता पढ़ना छोड़ कर मच्छरों की आवाज पर ध्यान केंद्रित किया, पर तब भी मुझे मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ी. अब मुझे न तो मच्छरों के काटने की चिंता थी और न ही मुझे मच्छरों को भगाने की. अब मुझे चिंता खाए जा रही थी कि क्या ध्वनि प्रदूषण के असर से मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई नहीं पड़ रही है या मेरे कानों में कोई खराबी आ गई है या फिर आजकल मच्छरों ने भिनभिनाना ही बंद कर दिया है?
मैं और मच्छर हिंदी कहानी
कुछ समय पूर्व तक मच्छरों की भिनभिनाहट से मैं सचेत हो जाया करता था और गले के ऊपर के हिस्से को मच्छरों के प्रकोप से बचाने का पूर्ण प्रयास करता था लेकिन कल जब कान के कई हिस्सों पर सूजन
हो गई, तब मुझे लगा इस में मच्छरों का दोष नहीं है. मुझे सचेत करने में मेरे कान सक्षम नहीं हो पा रहे, यह जान कर मैं ने डाक्टर से संपर्क करना ज्यादा मुनासिब समझा.
मैं ने डाक्टर साहब से संपर्क साधा. मेरी बारी आने पर डाक्टर साहब ने बड़ी बारीकी से मेरे बांईं कान का
मुआयना किया और कान के पास फुसफुसा कर पूछा कि भई, क्या दिक्कत है? तो मैं ने चिंतित स्वर में कहा,“डाक्टर साहब, सुनने में कुछ परेशानी हो रही है.”
उन्होंने दाएं कान का भी अवलोकन किया और पिछली आवाज से कम आवाज में फिर फुसफुसा कर ही पूछा कि यह तकलीफ कितने दिनों से है? मैं ने गंभीरता से जवाब दिया, “कल से ही…” और इस के बाद मैं ने सारा वाकेआ संक्षेप में बताया कि मुझे कल मच्छरों की भिनभिनाहट सुनाई ही नहीं पड़ी, तो मैं फौरन सलाह हेतु आप के पास आ गया.
हिंदी कहानी Main Aur Machhar
मेरी बातें सुन कर डाक्टर साहब ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा और फिर परचे पर मेरा नाम और पता लिखने के बाद मुझ से पूछा कि आप करते क्या हैं? मैं ने बताया कि एक सरकारी नौकर हूं और फिलहाल इसी शहर में काम करता हूं, तो उन्होंने कहा, “हो सकता है कि आप के कार्यालय का वातावरण अधिक शोरपूर्ण हो, इस कारण आप के सुनने की क्षमता कुछ कम हो गई हो, अन्यथा कान में कोई गङबङी नहीं लग रही. पर हां, मेरी सलाह होगी कि इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दें. आप तो सरकारी आदमी हैं. इसलिए भलीभांति आप इस के अभ्यस्त होंगे कि छोटीछोटी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सरकारों का फोकस तो हमेशा बड़े कामों पर होता है. इसलिए मेरा सुझाव है कि मच्छरों के विषय में ज्यादा न सोचें. आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं. इस विषय में ज्यादा न सोचें नहीं तो आप मानसिक विकृति के भी शिकार हो सकते हैं.”
डाक्टर साहब का यह सुझाव सुन कर मेरा कान तेजी से बजने लगा और मैं आननफानन में डाक्टर साहब से विदा ले कर घर की तरफ चल दिया।
बचपन से ही सुना था कि मच्छर कानों के पास गाना गाते हैं. मच्छरों ने यह अवसर मुझे अब तक प्रदान भी किया था. मच्छर दूर भी होते थे, तब भी यह लगता था कि कान के पास ही गुनगुना रहे हैं. दूरी का सही आंकलन न होने तथा उस की चुभन होने से अपने कानों को ही जोरदार झन्नाटे से मारने का दर्द हम ने कई बार झेला है. वैसे जानकार कहते हैं कि मच्छरों के पंख काफी छोटे होते हैं, इसलिए उड़ने के लिए उन्हें काफी तेजी से फड़फड़ाना पड़ता है.
इसी कारण उन से भिनभिनाने की आवाज आती है.अन्य कुछ विद्वानों का कहना है कि भिनभिनाना मच्छरों की फितरत है, जिस के जरीए वे लोगों से काफी अच्छे से घुलमिल जाते हैं. इस घुलमिल जाने की प्रवृत्ति पर ही तो किसी शायर ने कहा है,”तुम यह न सोचो कि तुम्हारी यादों ने जगाए रखा है, कभीकभी यह काम मच्छर भी कर लिया करते हैं…”
इस के अलावा कुछ वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि वह सिर्फ उड़ने के लिए नहीं, बल्कि प्रजनन क्रिया के लिए भी मादा मच्छर को लुभाने के क्रम में ऐसी आवाजें निकालते हैं. आश्चर्य यह है कि नर मच्छर मादा मच्छर को तब परेशान नहीं करते जब वह सो रही होती है. मच्छर प्रजनन क्रिया उड़ते वक्त ही करते हैं.
भिनभिनाना क्रिया भी इसी का एक हिस्सा है. चूंकि डाक्टर साहब ने मुझे सोचने से मना किया था इसलिए मैं ने कान के दोषों के विषय में सोचना बंद कर दिया. लेकिन अब यह मुद्दा बरकरार था कि जब मेरे कान ठीक हैं, तो मच्छरों का भिनभिनाना क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा?
इस कारण मैं ने कोरोनाकाल में जारी कुछ शोधपत्रों का अध्ययन करना शुरू किया. इन अध्ययनों से पता चला कि कोरोनाकाल में लोग भय के कारण या तो स्वविवेक से अपना इलाज कर रहे थे या पुरानी दवाओं को ही चालू रखे हुए थे. चूंकि कोरोनाकाल में लोगों का ध्यान केवल जान बचाने पर था, इस कारण डेंगू, मलेरिया और चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों के कारण और प्रकोप पर किसी का ध्यान नहीं जाता था.
कोरोनाकाल में मास्क के लगातार लगाए रखने के कारण कान के संवेदनहीन होने की आशंका भी कुछ शोधपत्रों में जताई गई थी. वैसे कुछ शोधपत्र यह भी बता रहे थे कि कोरोनाकाल में मच्छरों को अपना शिकार ढूंढ़ने में परेशानी होने लगी, इसलिए उन्होंने बिना भिनभिनाए अपना काम जारी रखने का हुनर विकसितकर लिया. पर इन शोधपत्रों को पढ़ कर मुझे न तो सहज विश्वास हुआ और न ही संतोष हुआ.
मेरी बातें सुन कर डाक्टर साहब ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा और फिर परचे पर मेरा नाम और पता लिखने के बाद मुझ से पूछा कि आप करते क्या हैं? मैं ने बताया कि एक सरकारी नौकर हूं और फिलहाल इसी शहर में काम करता हूं, तो उन्होंने कहा, “हो सकता है कि आप के कार्यालय का वातावरण अधिक शोरपूर्ण हो, इस कारण आप के सुनने की क्षमता कुछ कम हो गई हो, अन्यथा कान में कोई गङबङी नहीं लग रही. पर हां, मेरी सलाह होगी कि इन छोटीछोटी बातों पर ध्यान न दें. आप तो सरकारी आदमी हैं. इसलिए भलीभांति आप इस के अभ्यस्त होंगे कि छोटीछोटी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. सरकारों का फोकस तो हमेशा बड़े कामों पर होता है. इसलिए मेरा सुझाव है कि मच्छरों के विषय में ज्यादा न सोचें. आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं. इस विषय में ज्यादा न सोचें नहीं तो आप मानसिक विकृति के भी शिकार हो सकते हैं.”
डाक्टर साहब का यह सुझाव सुन कर मेरा कान तेजी से बजने लगा और मैं आननफानन में डाक्टर साहब से विदा ले कर घर की तरफ चल दिया।
बचपन से ही सुना था कि मच्छर कानों के पास गाना गाते हैं. मच्छरों ने यह अवसर मुझे अब तक प्रदान भी किया था. मच्छर दूर भी होते थे, तब भी यह लगता था कि कान के पास ही गुनगुना रहे हैं. दूरी का सही आंकलन न होने तथा उस की चुभन होने से अपने कानों को ही जोरदार झन्नाटे से मारने का दर्द हम ने कई बार झेला है. वैसे जानकार कहते हैं कि मच्छरों के पंख काफी छोटे होते हैं, इसलिए उड़ने के लिए उन्हें काफी तेजी से फड़फड़ाना पड़ता है.
इसी कारण उन से भिनभिनाने की आवाज आती है.अन्य कुछ विद्वानों का कहना है कि भिनभिनाना मच्छरों की फितरत है, जिस के जरीए वे लोगों से काफी अच्छे से घुलमिल जाते हैं. इस घुलमिल जाने की प्रवृत्ति पर ही तो किसी शायर ने कहा है,”तुम यह न सोचो कि तुम्हारी यादों ने जगाए रखा है, कभीकभी यह काम मच्छर भी कर लिया करते हैं…”
इस के अलावा कुछ वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि वह सिर्फ उड़ने के लिए नहीं, बल्कि प्रजनन क्रिया के लिए भी मादा मच्छर को लुभाने के क्रम में ऐसी आवाजें निकालते हैं. आश्चर्य यह है कि नर मच्छर मादा मच्छर को तब परेशान नहीं करते जब वह सो रही होती है. मच्छर प्रजनन क्रिया उड़ते वक्त ही करते हैं.
भिनभिनाना क्रिया भी इसी का एक हिस्सा है. चूंकि डाक्टर साहब ने मुझे सोचने से मना किया था इसलिए मैं ने कान के दोषों के विषय में सोचना बंद कर दिया. लेकिन अब यह मुद्दा बरकरार था कि जब मेरे कान ठीक हैं, तो मच्छरों का भिनभिनाना क्यों नहीं सुनाई पड़ रहा?
इस कारण मैं ने कोरोनाकाल में जारी कुछ शोधपत्रों का अध्ययन करना शुरू किया. इन अध्ययनों से पता चला कि कोरोनाकाल में लोग भय के कारण या तो स्वविवेक से अपना इलाज कर रहे थे या पुरानी दवाओं को ही चालू रखे हुए थे. चूंकि कोरोनाकाल में लोगों का ध्यान केवल जान बचाने पर था, इस कारण डेंगू, मलेरिया और चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों के कारण और प्रकोप पर किसी का ध्यान नहीं जाता था.
कोरोनाकाल में मास्क के लगातार लगाए रखने के कारण कान के संवेदनहीन होने की आशंका भी कुछ शोधपत्रों में जताई गई थी. वैसे कुछ शोधपत्र यह भी बता रहे थे कि कोरोनाकाल में मच्छरों को अपना शिकार ढूंढ़ने में परेशानी होने लगी, इसलिए उन्होंने बिना भिनभिनाए अपना काम जारी रखने का हुनर विकसितकर लिया. पर इन शोधपत्रों को पढ़ कर मुझे न तो सहज विश्वास हुआ और न ही संतोष हुआ.
मैं aur machhar story
मैं भय से अपने मित्रों को भी इस विषय में सलाह के लिए आमंत्रित नहीं कर सकता था मगर स्वयं
के स्तर पर गहन चिंतन जारी रहा. कुछ दिनों की विचार यात्रा के बाद मुझे लगा कि मच्छरों ने शायद कोई महीन पार्टी जौइन कर ली है, जिस कारण उन्होंने भिनभिनाना बंद कर दिया है.
माननीय नेता लोग भी जब जनता को हानि पहुंचाने वाले कोई काम करते हैं तो इस की भनक तक नहीं लगने देते. मच्छरों ने भी पार्टी हित में संभवतया अपने गुणों को छिपाने की कोशिश की है. मुझे लगा कि मेरे कानों में मच्छरों की भिनभिनाहट वैसे ही सुनाई नहीं दे रही, जैसे नेताओं को जनता की आवाज और मांग सुनाई नहीं देती.
यह सब को पता होता है कि मच्छर डेंगू,मलेरिया, चिकुनगुनिया फैला सकते हैं मगर सच कहें तो मच्छर को भगाने और चुनचुन कर मारने का अपना ही मजा है. हम तो बरसों से इस का मजा ले रहे थे. पर मच्छर थे कि मुझे अब भनक लगने देना नहीं चाह रहे थे. वैसे हर व्यक्ति मच्छरों की आवाज के लिए अलग तरह से संवेदी होता है. इसलिए मच्छरों की भिनभिनाहट स्पर्श की सूचना देने वाली तंत्रिकाओं को भी उत्तेजित कर देती है. इस कारण कुछ लोग आवाज सुनने के साथ दिल मिलाते हुए प्रतिक्रिया करते हैं पर यह मच्छरों का ही कमाल है कि वह लोगों के दिमाग को अतिसक्रिय कर देता है और तुरंत प्रतिक्रिया के लिए विवश कर देता है.
अपने विचार मंथन से संतुष्ट नहीं होने पर आखिरकार मैं ने अपने एक परम मित्र को अपनी समस्या बताई, तो उस ने मजाक में कहा कि हो सकता है कि तुझे कमरे में अकेला जान कर केवल मादा मच्छर ही घुस जाती होंगी, जो भिनभिनाती नहीं. मुझे लगता है कि मादा मच्छरें तुम पर आसक्त हो गई हों, जो बिना किसी फड़फड़ाहट के तुम्हें बुखार से तमतमाने के लिए खून की तलाश कर रही होंगी.
मित्र की व्याख्या ने मुझे अपने पौरूष पर गर्व महसूस कराया, लेकिन संयोग देखिए, मुझे तभी एक मच्छर की भिनभिनाहट सुनाई दी. संभवतया वह नर मच्छर होगा. मुझे उस की उपस्थिति से जलन का अनुभव हुआ. मैं कुछ देर पहले मित्र की बात से जो खुशी महसूस कर रहा था, अचानक उस मच्छर की उपस्थिति से जलन का अनुभव करने लगा. मैं ने तेजी से उस मच्छर का दोनों हाथों से काम तमाम कर दिया. पर उस के मरते ही मुझे एहसास हुआ कि यह क्या, मुझे तो आवाज सुनाई पड़ रही थी. इस बात की मुझे खुशी हुई. पर मैं अब पूर्ण तसल्ली चाहता था.
इसलिए मच्छरों की आवाज पर ध्यान केंद्रित किया. कुछ समय बाद ही एक मच्छर मेरे कान के पास आया, जो कह रहा था,“अपनी व्यथा लिख रहे हो या हम पर व्यंग्य लिख रहे हो? साहस नहीं है कि व्यवस्था पर लिखो. चारों तरफ गंदगी पड़ी है. नगर निगम सोई पड़ी है. न जमा हुआ पानी निकलता है, न अस्पताल का कचरा उठता है और न फौगिंग होती है तो इस में हम क्या करें? तुम्हारी कुव्यवस्था से हमारा जन्म होता है. कभी उस पर भी लिखो, जिस ने मुझे पैदा किया. वही सब का कारण है, बदनाम तो मैं अकारण हो गया. तुम भी अगर मुझे बदनाम करोगे, तो सोचो किस मुंह बकरी का दूध और पपीते के पत्ते का रस पी पाओगे. अच्छा है कि मुझ से दोस्ती कर लो. सिस्टम के साजिश में फंस कर मुझे बदनाम न करो,” मच्छर की बातें सुन कर मेरा भय से स्वाभिमान जग गया और मैं ने मच्छर पर लिखना बंद कर दिया.