दायरे hindi Kabita
दायरों में रहता हूं,
इसीलिए अब कहो,
मैं किसी को अपनी कहता हूँ।
पता नहीं चला,
दायरे बढ़ते चले गए,
फिर भी. भीड़ और शोर में
अकेला निस्तब्ध-सा रहता हूं।
मुझको जानने वाले मुझसे बहुत ही कम हैं,
इसलिए दायरों को अपनी ओर आने को कहता हूं।
जानता हूं खुद में खुद को खोकर कुछ करने में,
मेरी मंजिल के कदमों की राह कहां आसान होगी
और मेरी मंजिल की राह वास्तविक और दूर भी होगी,
इसीलिए दायरों को मिटा कर अभिज्ञ
एक खुशी-सी मुस्कुराहट की खुशबू सबके लिए देता हूं।