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Makar Sankranti 2023: 'पतंग' पर कहे गए शेर - Makar Sankranti 2023: Patang Shayari

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मकर संक्रांति 2023 शायरी
मकर संक्रांति 2023 शायरी


हमें दुनिया फ़क़त काग़ज़ का इक टुकड़ा समझती है 
पतंगों में अगर ढल जाएँ हम तो आसमाँ छू लें 
- नफ़स अम्बालवी 

फिर पूछना कि कैसे भटकती है ज़िंदगी  
पहले किसी पतंग की मानिंद कट के देख  
- नज़ीर बाक़री

कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा 
सादा माँझे का उसे माह ने गोला भेजा 
-मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

कहीं फ़लक पे सरकती है सरसराती हुई 
कहीं दिलों की फ़ज़ा में पतंग उड़ती है 
-ज़फ़र इक़बाल

चढ़े हैं काटने वालों पे लूटने वाले 
इसी हुजूम-ए-बला में पतंग उड़ती है 
-ज़फ़र इक़बाल


ये ख़्वाब है कि उलझता है और ख़्वाबों से 
ये चाँद है कि ख़ला में पतंग उड़ती है 
-ज़फ़र इक़बाल

मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
- नज़ीर अकबराबादी


पतंग उड़ाने से पहले ये जान लेना था 
कि इस की असल है क्या और माहियत क्या है 
-शहराम सर्मदी


दिल के किसी कोने में पड़े होंगे अब भी
एक खुला आकाश पतंगें डोर बहुत
- ज़ेब ग़ौरी

पतंग कटने का बाइस और है कुछ
अगरचे डोर भी उलझी पड़ी है
- लियाक़त जाफ़री



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