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अनहोनी | Pret Story - Anhoni | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi - HindiShayarih HSH

हेलो दोस्तो ! प्रेत की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - अनहोनी। यह एक Bhoot Ki Kahani है। तो अगर आपको भी Darawani Kahaniya, Bhutiya Kahani या Horror Story पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।
 
 
अनहोनी | Pret Story  - Anhoni  | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi
अनहोनी | Anhoni | Pret Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi
Anhoni | Horror Story | Bhutiya Kahani | Chudail Ki Kahani | Horror Stories in Hindi




अनहोनी
मुझे भी आपकी तरह भूतों से बातें करना, उनकी कहानियों देखना बहुत अच्छा लगता था। कभी कभी तो मैं पूरी रात भूतों की किताबें बढ़ते हुए उनकी कहानियां दोहराते हुए निकाल देता था।

सच कहूं तो मैंने आज तक कभी कोई भूत नहीं देखा। मैं अक्सर यही सोचता था कि भूत आखिर दिखते कैसे होंगे ?

क्या सच में जैसा फिल्मों में दिखाया जाता है, ठीक वैसे ही होते हैं ? बेहद डरावने, बहुत खूंखार बड़े बड़े नाखून जो इंसानों के जिस्म से उसका मांस नोचकर खा जाए या फिर कुछ और ?

आपकी तरह मैं भी अक्सर यही सोचता हूँ कि किसी दिन अगर कोई भूत, पिशाच, डायन, चुड़ैल और पता नहीं क्या क्या मेरे सामने आ जाए, तो मैं क्या करूँगा ?

आखिर मैं उन्हें पहचान भी पाऊंगा या नहीं ? पर उस रात के हादसे के बाद से मेरे ये सारे सवाल धरे के धरे रह गए।

अब बस मैं दुआ करता हूँ कि अब आपको ये बुरी ताकतें ना ही दिखें तो बेहतर है। आप भी सोच रहे होंगे, क्या करें ?


ऐसा क्या हुआ मेरे साथ जिसने मेरी सोच को हमेशा हमेशा के लिए बदलकर रख दिया ? तो चलिए आज मैं आपको अपनी कहानी सुनाता हूँ।

ये बात उन दिनों की है जब मैं अकेला ही कानपुर से दिल्ली अपनी मौसी के यहाँ जा रहा था। रात का सफर था।

ऊपर से सर्दियों का मौसम। इस पर भी मैंने अपने लिए खिड़की वाली सीट बुक की थी। उस दौरान मेरी उम्र 23 साल की थी।

मुझे बहुत अच्छे से याद है कि मैं खिड़की की सीट से अपना चेहरा बाहर निकालकर सर्दियों का मज़ा ले रहा था और बाकी मौजूद पैसेंजर अपनी नींद का।

तभी अचानक ही बस ड्राइवर ने जोर की ब्रेक लगा दी। मैं खिड़की से गिरने को ही हो गया।

मैं," अबे ! क्या पीकर चला रहा है ? मरने का ही शौक है तो पटरी पर लेट जाके। हम लोगों को क्यों मारना चाहता है ? "


अचानक ब्रेक लगने से सबकी नींद हराम हो गई। सबका गुस्सा एक पल में ड्राइवर पर फूट पड़ा पर कंडक्टर ने बात संभाले हुए कहा।

कंडक्टर,"अरे ! घबराइए नहीं, वो अचानक से बिल्लियों का जोड़ा बस के नीचे आ गया इसलिए एकदम से ब्रेक लगानी पड़ी। पर कोई फायदा नहीं हुआ, वो बेचारे जिंदा ही कुचले गए। "

कंडक्टर की बात सुन मेरे बगल में बैठे एक बूढ़े शख्स ने कहा।

बूढ़ा," क्या... तुमने बिल्ली के जोड़े को कुचल दिया ? अरे आज अमावस है, काली अमावस।

ये 12 सालों में सिर्फ एक बार आती है। इस दिन चुड़ैल, पिशाचिनी, डायन किसी जिन्न या भूत के साथ मिलनकर खुद को और शक्तिशाली करती हैं।

तुमने अनजाने में ही पर बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया है बेटा। अब अनहोनी होने से कोई नहीं रोक सकता। "

बूढ़े शख्स की बातें सुन सबके रूह कांप गई थी। बस में मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर मौत का डर साफ़ दिखाई दे रहा था।

बस में हम कुल 15 लोग ही सफर कर रहे थे। पर किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि कोई बस से नीचे उतरकर देखे। पर कंडक्टर ने बूढ़े शक्स की बातों को हवा में उड़ाते हुए कहा।

कंडक्टर," अंकल, आप बुढ़ापे में सठिया गए हो। कुछ भी अनाप शनाप बक बक करके मेरे पैसेंजर को भी डरा रहे हो।


देखो, कैसे हम आपको सही सलामत दिल्ली पहुंचाते हैं। ड्राइवर साहब, ज़रा बस को हवाई जहाज तो बनाओ और जल्दी से दिल्ली पहुँचाओ। "

 
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कंडक्टर बड़े ही जोश से ड्राइवर से कहता हुआ उसकी तरफ देख ही रहा था कि उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। ड्राइवर अपनी सीट पर नहीं था।

ड्राइवर के गायब होते ही बस में हल्ला हो गया। सब लोग एक पल में बेचैन हो गए। तभी कंडक्टर ने सबको शांत कराते हुए कहा।

कंडक्टर," अच्छा, शांत हो जाइए आप लोग। इसमें घबराने की कोई बात नहीं। जब कभी बस रुकती है तो ड्राइवर साहब बिना बताए हल्के होने चले जाते हैं।

इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है। वैसे भी मैं इतनी बस तो चला ही लेता हूँ कि आप लोगों को सही सलामत दिल्ली पहुँचा दूं। पर पहले ड्राइवर साहब को ढूंढता हूँ। "

इतना कहकर कंडक्टर गाड़ी से उतरने ही वाला होता है कि मेरे बगल में बैठे बूढ़े शख्स ने कंडक्टर को चेतावनी देते हुए।

बूढ़ा," सुना नहीं कंडक्टर, बाहर मत जाओ। ड्राइवर अब कभी वापस लौटकर नहीं आने वाला और अगर तुम भी बस से उतर गए तो तुम्हारा भी वही हाल होगा जो तुम्हारे ड्राइवर का हुआ है, फिर कभी नहीं मिलोगे। "

बूढ़े शख्स के इतना कहने पर भी कंडक्टर ने उसकी एक नहीं सुनी और बेफिक्र ही बस से उतरकर ड्राइवर को आवाजें लगाने लगा।

कंडक्टर," ड्राइवर साहब, कहाँ हैं आप ? ड्राइवर साहब, अब चलिए। यार पैसेंजर परेशान हो रहे हैं। जंगल के बीचो बीच बस रोक के कहाँ गायब हो गए ? "

कंडक्टर चीख चीखकर ड्राइवर को आवाजें लगा रहा था। उसकी चीखों की गूंज ड्राइवर पूरे जंगल में गूंज रही थी।

एक तो शरद रात ऊपर से डर का खौफ। ये मेरी जिंदगी का पहला लम्हा था, जब मुझे यकीन हो गया था कि जरूरी नहीं कि हर बार डर आपके सामने कोई चेहरा लेकर आए।

कहते हैं जब डर हवा में घुल जाता है तो हर एक सांस कीमती लगने लगती है। ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हो रहा था।

सबकी सांसें डर के बारे गर्म हो गई थी। कि तभी कंडक्टर की एक चीख ने सबका खून जमा दिया। सब लोग खिड़की से बाहर देखने लगे थे पर किसी को भी कंडक्टर दिखाई नहीं दिया।

तभी अचानक से कंडक्टर का सिर बस के शीशे को तोड़ता हुआ किसी फुटबॉल की तरह हम सबके बीच आ गिरा।

कंडक्टर का कटा सिर देख सबके पैरों तले जमीन खिसक गई। सब लोग डरके मारे चीखने लगे थे।


सच कहूं तो एक पल को कंडक्टर के कटे सिर में मुझे मेरा सिर दिखाई दे रहा था और अभी तो अनहोनी की शुरुआत भर थी।

कंडक्टर के मरते ही बस के आसपास काले साये मंडराने लगे थे। अजीब अजीब सी आवाज़ें कान को छीलने लगी थीं।

डायन," तुम लोगों ने हमें मार दिया था, हम तुम में से किसी को जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। "

जिन्नाद," हमारा मिलन तुम लोगों की वजह से अधूरा रह गया। तुम्हें उसकी सजा मिलकर रहेगी। "

आवाजें सुनकर साफ पता चल रहा था कि बूढ़े शख्स का कहा एक एक लफ्ज़ बिल्कुल सही था। एक डायन और जिंदाद बस के चारों ओर मंडरा रहे थे।

मैं उन्हें अंधेरे साये में भी साफ देख सकता था। डायन और जिन्नाद की आँखों में बदले की आग साफ छलक रही थी।

वे दोनों हमारे खून के प्यासे ही बस के दोनों ओर घूम रहे थे। फिर एक पल तो ऐसा आया कि डायन की चीख से बस के सारे शीशे टूट लोगों के जिस्म में जा घुसे।

किसी का कला कट गया था तो किसी की छाती। एक ओर जो लोग आधे मरे थे, वो डर के मारे बस से बाहर निकल कर सुनसान जंगल की ओर दौड़ पड़े। लेकिन जिन्नाद और डायन ने किसी एक को नहीं छोड़ा।

काले साये के रूप में जिन्नाद और डायन लोगों को अपने साथ खला में ले जाते और बड़ी बेरहमी से उनके जिस्म के टुकड़े कर उन्हें नीचे फेंक देते थे।

इधर बस में भी मेरे चारों तरफ खून ही खून इकट्ठा हुए जा रहा था। अब बस में सिर्फ हम दोनों ही जिंदा बचे थे, मैं और एक बूढ़ा शख्स।

कांच के टुकड़ों ने मुझे भी नहीं बक्सा और मेरे जिस्म को भी छलनी कर गए। पर मेरी सांसें अभी भी चल रही थीं।



 
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इस भयानक मंजर के बाद मैं अपना होश संभाल पाता, इससे पहले ही मुझे उस बूढ़े शख्स की चीखें सुनाई देने लगी।

उस बूढ़े शख्स की आँखों में कांच के टुकड़े जा घुसे थे। वो पूरी तरह अंधा हो गया था। वो बस दर्द में चीख रहा था, तड़प रहा था।


मैं," लगता है अब हम लोग जिंदा नहीं बचेंगे। वो डायन और जिंदाद हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे। "

मैं डरा सहमा बस की सीट के नीचे छिपा हुआ बस बूढ़े शक्स से कह रहा था और उस बूढ़े शख्स ने भी दर्द में तड़पते हुए मेरी बात का जवाब दिया।

बूढ़ा," बेटा, किसी तरह हमें सुबह होने का इंतजार तो करना ही पड़ेगा। दूसरा और कोई रास्ता नहीं है हमारे पास, बस किसी तरह ये रात कट जाए। "

बूढ़े शख्स की बात खत्म होती इससे पहले ही मुझे महसूस हुआ कि हम लोग हवा में ऊपर उठने लगे थे। जब मैंने खिड़की से बाहर देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई।

जिन्नाद और डायन ने बस को हवा में उठा रखा और ज़ोर ज़ोर से उसे गोल गोल घुमाए जा रहे थे। ये मंजर इतना भयानक था कि दिल के टुकड़े होने लगे थे।

पूरी बस अब खून से लाल हो चुकी थी। मैं और वो बूढ़ा शक्स अनगिनत लाशों के खून से पूरी तरह से भीग चुके थे।

मैं," बाबा, रात काटना तो बहुत मुश्किल है। हमने जल्दी से कोई रास्ता नहीं निकाला तो हम भी इन लाशों के बीच एक लाश बनकर रह जाएंगे। बाबा, आप कुछ तो बोलो। "

मेरी इस बात पर बाबा ने जवाब देते हुए कहा।

बूढ़ा," बेटा, एक ही रास्ता है। हमें किसी तरह आग का इंतजाम करना होगा, क्योंकि बुरी से बुरी ताकतें आग के आसपास भी नहीं भटकतीं।

बस हमारे पास जलाने के लिए एक माचिस के अलावा और कुछ नहीं है। "

ये सुनते ही मेरे दिमाग में एक आइडिया आया।

मैं," बाबा, भले ही हमारे पास कुछ ना हो। लेकिन बस में तो डीजल भरा पड़ा होगा। उससे हम इस डायन और जिन्नाद को दूर भगा सकते हैं। "

बाबा और मैं बात कर ही रहे थे कि बस कब खुद व खुद नीचे आ गई, हमें पता ही नहीं चला। पर अब सबसे बड़ा सवाल ये था कि बस से डीजल कौन निकालेगा ?


क्योंकि बाबा अंधे हो चुके थे और मैं अपनी जान खतरे में नहीं डालना चाहता था। पर मन मारकर भी मैंने अपनी जान दाव पर लगाई और बस के बाहर जाने का फैसला किया।

मैं अभी बस से डीजल निकाल ही रहा था कि मुझे बहुत तेजी से ठंड लगने लगी। मेरे आसपास काले साये भटकने लगे।

मैं तुरंत ही समझ गया था कि वो डायन और जिन्नाद मेरे आसपास ही मंडरा रहे हैं। मैं आधा बोतल डीजल ही गाड़ी से निकाल पाया था कि मुझे डायन की हँसी सुनाई देने लगी।

जिसे सुनकर मैं कांपने लगा। मैंने कांपते हुए अपनी गर्दन ऊपर उठाई ही थी कि मैंने देखा कि वो डायन मेरे सिर के ठीक ऊपर हवा में उल्टी लटकी हुई है और मुझ पर ही हंसे जा रही थी।

सच कहूं तो मैं भी समझ गया था कि मैं जिंदा नहीं बचूंगा। पर तभी बाबा ने चिल्लाते हुए कहा।

बूढ़ा," ये लो बेटा माचिस और बस को ही जला दो। मेरी फिक्र मत करो। "

इतना कहकर बाबा ने खिड़की से माचिस बाहर फेंक दी, जो ठीक मेरे पैरों के पास ही आकर गिरी थी।

मैं माचिस उठाने ही वाला था कि मैंने देखा कि बस के नीचे जिन्नाद ड्राइवर के जिस्म से मांस नोचकर खाये जा रहा था।

उसके मुँह से ड्राइवर अंतड़ियां बाहर निकल रही थीं। ये खौफनाक मंजर देख मैंने डर के मारे डीजल की बोतल फेंक दी और तुरंत ही माचिस से बस में आग लगा दी।

जिन्नाद तो तुरंत ही साया बनकर गायब हो गया पर बस ने आग पकड़ ली और वो बूढ़ा शक्स भी बस के साथ जिंदा जलने लगा। आग की रौशनी देख वो डायन और जिन्नाद का कुछ पता नहीं था।

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