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बेपनाह - Bepanah Kanani Written - By Vikarm Sharma Sifar | hindi kahani Bhag 13 - hindishayarih


बेपनाह - Bepanah Kanani Written - By Vikarm Sharma Sifar  Part 13



सही कहते हैं कि अक्ल बादाम खाने से नहीं बल्कि ठोकरें खाने से आती है। ज़िन्दगी के स्कूल की पढ़ाई बड़ी अजीब है। यहाँ न कोई छुट्टी मिलती है और न ही कोई होमवर्क लेकिन मज़ेदार बात यह है कि यह परीक्षा पहले लेती है और सबक बाद में सिखाती है।


प्रिया को भी सबक मिल गया था। एक ऐसा सबक जो आगे जाकर शायद उसके जीवन में परिदर्तन लाने वाला था। पता नहीं इसका परिणाम अच्छा होने वाला था या ढुरा किन्तु इतना पक्का था कि यह दुर्घटना उसे दुनियादारी की कुछ समझ तो ज़रूर देकर गई थी। उसने ठोकर ज़रूर खाई थी मगर इससे पहले कि वह आधे मुँह गिरती, दीप्ति ने उसे संभाल लिया था और इसमें उसका साथ राहुल ने दिया था।



दीप्ति राहुल के कन्धे का सहारा लेकर चलने को हुई तो पाँव जमीन पर रखते ही चीख पड़ी। इससे पहले कि वह दूसरी तरफ लुढ़क जाती, प्रिया ने भाग कर उसे संभाल लिया। वह अपना रोना छोड़ कर दीप्ति की तरफ लपकी थी। दोनों के कन्धों पर हाथ रखकर दीप्ति अपना पाँद हवा में उठाती हुई लँगड़ा कर चल रही थी लेकिन जैसे ही वह कूदती, सारा भार जैसे पाँव में आ गया था। वह बुरी तरह कराह रही थी।


प्रिया ने उसकी कमर पर अपना हाथ रखकर उसे संभाला। दीप्ति ने उसकी तरफ देखा तो उसके आँखें लाल हो चुकी थीं और काजल बह कर चेहरे पर अपनी छाप छोड़ चुका था। उसकी आँखों में अब अपना दुःख नहीं बल्कि दीप्ति के लिए चिन्ता थी। दुनिया में सबसे बुरी बात होती है किसी की आँखों में आपकी दजह से आँसू होना और सबसे अच्छी बात है किसी की आँखों में आपके लिए आँसू होना। यदि आप दूसरी जगह आते हैं तो समझिए जीवन सार्थक हो गया क्योंकि आज के युग में यदि ऐसी निश्छल मित्रता अथवा प्रेम मिल जाए तो व्यक्ति कोई भी युद्ध जीत सकता है।


दीप्ति से अब चलना मुश्किल हो रहा था। एक-एक कदम उठाते हुए उसे लग रहा था कि जैसे किसी ने जलता हुआ कोयला उसकी एड़ी पर रख दिया हो और वह धीरे-धीरे उसके पाँव और फिर उसकी टाँग की चमड़ी और उसकी नसों को सुलगा रहा था। वह दोनों की सहायता से किसी तरह वैन के पास पहुँची और दरदाजा खुलते ही सीट पर कराहते हुए धड़ाम से गिरी। राहुल जान चुका था कि चोट मामूली नहीं थी। उसने फटाफट से वैन को अस्पताल की ओर भगाना शुरू किया।


प्रिया ने दीप्ति के पाँद का निरीक्षण करने के लिए उसे छूना चाहा तो दीप्ति ने आह भरते हुए उसका हाथ हटाया और आँखें ज़ोर से बन्द कर ली जिससे प्रिया समझ गई कि उसकी पीड़ा असहनीय थी। उसने सीट पर दीप्ति को लिटा दिया और उसका सिर अपनी गोद में लेकर सहलाने लगी। दीप्ति को इससे मानसिक संतुष्टि थी कि प्रिया अब ठीक थी परन्तु उसके पाँव का दर्द जस का तस ही था, वह प्यार भरा स्पर्श उस पीड़ा को कम नहीं कर पाया था। वह अभी भी प्रिया के बारे में ही सोच रही थी। दह प्रिया का स्पर्श पाकर अपनी आँखों को बन्द किए लेटी हुई थी। उसने अपना ध्यान पाँद से हटाना चाहा ताकि उसका दर्द कुछ तो कम हो सके। तभी उसे प्रिया के सिसकने के आवाज़ सुनाई दी।


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दीप्ति ने आँखें खोल कर देखा तो प्रिया का आँसूओँ से भीगा चेहरा सामने था। दीप्ति को अपनी तरफ देखता हुआ जान कर प्रिया की सिसकियाँ अब रोने में ददल गई। "यह सब मेंरे कारण हुआ", उसने फूट-फूट कर रोते हुए कहा। दीप्ति ने अपने माथे पर रखे प्रिया के हाथ को अपने हाथ में लिया लेकिन प्रिया के आँसू मूसलाधार बहे जा रहे थे।



दीप्ति को दह एक मासूम बच्ची जैसी लग रही थी। उसे इस प्रकार रोता देख दीप्ति को अच्छा नहीं लग रहा था। उसने न में सिर हिलाते हुए प्रिया को रोने से मना कर दिया। दर्द के मारे वह बोल नहीं पा रही थी। यह दर्द अब पाँ में नहीं दिल में था। आखिर इतनी मासूम लड़की को रोता देख पत्थर का भी दिल पिघल जाता, वह तो फिर भी उसकी पक्की दोस्त थी।


दीप्ति उसकी मासूमियत को बचाने में कामयाब रही थी लेकिन दिल पर लगी चोट तो निशान दे ही गई थी। प्रिया एक मासूम कली ही तो थी जिसे कोई अपनी हवस के लिए रौंद देना चाहता था। हर कली को बचाने के लिए उसके समीप ही एक कांटा होता है। दीप्ति वही कांटा बनकर आकाश को चुभी थी।


अस्पताल के सामने दैन रोक कर राहुल अंदर घुसा और कुछ ही पलों के ढाद स्ट्रेचर लिए दो व्यक्तियों के साथ उपस्थित हुआ। उसने बड़े प्यार से दीप्ति को सहारा देकर स्ट्रेचर पर लिटाया और फिर वे लोग अस्पताल के अन्दर चले गए। दीप्ति ने तब भी राहुल का हाथ नहीं छोड़ा था। वह पीड़ा के मारे उसका हाथ पकड़े हुए थी जबकि राहुल की आँखों में घढराहट थी लेकिन चेहरे पर शान्ति बनाए रखना चाहता था ताकि दीप्ति को सांत्वना मिलती रहे। नहीं तो उस समय दोनों लड़कियों को एक साथ सम्भालना कठिन हो जाता। प्रिया भी रोती हुई उसके साथ चल रही थी।


एक्स-रे के बाद पता चला कि दीप्ति के टखने की हड्डी मामूली रूप से चटक गई थी। प्लास्टर तो लगना ही था लेकिन उसका चलना-फिरना मना कर दिया गया था ताकि हड्डी जल्दी जुड़ सके। डॉक्टर उसे एक रात अस्पताल में रखना चाहते थे ताकि निरीक्षण करके सन्तुष्ट हो जाएं कि कहीं और चोट तो नहीं आई थी लेकिन दीप्ति घर जाने की ज़िद्द पर अड़ गई थी। उसकी ज़िद्द का एक कारण यह भी था कि उसकी मॉम और नानी उसके घायल होने की खबर पाकर घबरा जाती। वह उनके सामने रहती तो उन्हें कुछ तो तसल्ली मिलती। एक दूसरा कारण भी था। राहुल उसे अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप एक महंगे अस्पताल में लाया था। यह बात चाहे राहुल या प्रिया के लिए बड़ी नहीं थी परन्तु दीप्ति जैसी मध्यवर्गीय लड़की के लिए महत्वपूर्ण थी। वह यह बात उनसे नहीं कह सकती थी। उसे घर जाने की ज़िद्द पर अडिग देखकर राहुल को घुटने टेकने पड़े और उसे प्लास्टर लगठा कर राहुल ने घर ले जाने की तैयारी कर ली।


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व्हील चेयर से दीप्ति को दैन तक लाया गया था। वैन में बैठ कर उसे नींद का अनुभव होने लगा। उसकी आँखें बन्द होने लगीं थी। शायद उसे दी गई दवा और इन्जैक्शन का असर था। प्रिया ने उसे सीट पर लिटाया और स्वयं राहुल के साथ आगे ठाली सीट पर बैठ गई ताकि दीप्ति को कोई असुविधा न हो। उसने दीप्ति की टाँग के नीचे आकाश के लिए लाए गए उपहारों में से एक नर्म-सा दिलनुमा तकिया रख दिया ताकि उसके पाँद को कोई तकलीफ न हो। वह जैसे बताना चाहती हो कि उसके दिल का स्थान किसी धोखेढाज़ के पास नहीं बल्कि अपनी सबसे अच्छी दोस्त के पैरों में था। राहुल के दैन चलाते ही दीप्ति पर नींद का खुमार छाने लग गया था। आँखे बन्द करने से पहले उसने प्रिया को उदास और चिन्तित चेहरा लिए पीछे मुड़कर अपनी तरफ देखते हुए पाया। राहुल ने वैन चलाते हुए उसका कन्धचा थपथपा कर दीप्ति की चिन्ता न करने का इशारा किया। प्रिया सीट से सिर टिका कर सामने देखने लगी। उसकी आँखों के सामने सड़क तो थी लेकिन वह अभी भी शाम दाली घटना से उभर नहीं पाई थी।


कुछ समय ढाद दीप्ति की नींद तब खुली जब उसे आभास हुआ कि कोई उसे प्यार से उठा रहा था। उसने उठने के प्रयास में देखा कि वह अपने घर के सामने थी। मॉम और नानी उसे घढराई हुई दिखी तो उसने नींद के समन्दर से निकलते हुए मुस्कुराने का प्रयास किया ताकि उन्हें समझा सके कि वह अब ठीक थी। चाहे दवा के कारण अब दर्द उतना नहीं हो रहा था लेकिन फिर भी था तो सही। चलना तो दूर, अब उसमें उठने की भी हिम्मत नहीं थी। यहाँ तक तो वह किसी तरह पहुँच गई थी लेकिन अब घर के अन्दर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। अभी वह इसी दुविधा में थी कि राहुल ने उसका हाथ पकड़ कर पीछे से अपने कन्धे पर रखा और उस फूलों सी हल्की लड़की को सावधानीपूर्वक ऐसे उठाया जैसे वह सचमुच फूलों से बनी हो।


दीप्ति आज दूसरी बार राहुल के इतना करीब थी बल्कि उस दिन से भी ज़्यादा जब कई दर्षो बाद मिलने पर राहुल ने खुशी से उसे गले लगा लिया था। शायद उस समय वह स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रख पाया था। उसके बाद राहुल ने कभी उसे छूने का प्रयास नहीं किया था। आज भी दीप्ति को इस अदस्था में देखकर और कोई चारा न पाकर उसने मजबूरी से उसे बाहों में उठा लिया था।


दीप्ति के हाथ अपने आप ही राहुल की तरफ बढ़े और उसने राहुल के गले पर अपनी बाहों का हार डाल दिया था। वह स्वयं नहीं जानती थी कि ऐसा उसने गिरने के डर से किया था या फिर उसके अन्दर की हसरत उसके इतना करीब आकर मचल उठी थी। चाँदनी रात में राहुल उसे बाहों में उठा कर चल रहा था। दीप्ति ने उसका चेहरा पहली बार इतना नज़दीक से देखा था। दीप्ति की मॉम ने घर का दरवाज़ा खोला और राहुल ने अंदर प्रवेश किया। वह उसे उसके कमरे की तरफ ले जा रहा था।


"क्या?" राहुल ने गोद में उठाई हुई दीप्ति की तरफ ध्यान दिया तो वह उसकी तरफ चोरी से टकटकी लगाए देखे जा रही थी। इसीलिए वह उससे पूछ बैठा था। शायद उसे लगा था कि दीप्ति को किसी चीज़ की ज़रूरत थी। दीप्ति चोरी पकड़े जाने पर घबरा गई और न में सिर हिला कर चेहरा घुमा लिया।


“उन्स" वह बड़बड़ाई तो राहुल ने फिर से उसकी तरफ प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा लेकिन दीप्ति गहरी साँस लेते हुए खुद को सम्भाल रही थी। उसने उर्टू का यह लफ्ज़ एक बार कहीं सुना था और आज राहुल के इतना समीप होकर फिर से याद आया था।



निकटता, मित्रता, अपनत्व और प्रेम सबका एक ही अर्थ है, उन्स। सिर्फ भावनाओं का भेद है, और कुछ नहीं। राहुल के लिए उसके मन में यही सब तो चल रहा था लेकिन असल में वह कौन सी भावना थी, शायद वह स्वयं नहीं जानती थी या शायद जानना ही नहीं चाहती थी। उसने अनजाने में ही राहुल की बाज़ू के कस कर पकड़ लिया था। उसे किसी और चीज़ का लालच नहीं था। दह बस यह चाहती थी कि उसके कमरे तक का सफ़र जल्दी खत्म न हो और यह उन्स हमेशा बना रहे। अगले ही पल उसने यथार्थ में आने की कोशिश करते हुए स्वयं को ऐसे विचारों से निकाला।


राहुल ने जब उसे बिस्तर पर बड़े ही आराम से लिटाया तो दीप्ति की आँखें फिर से बोझिल होने लगी और न चाहते हुए भी नींद के समन्दर में उतर गई।



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