Short Story : मन के बंधन
मेरे लिए अनजाना था वह, लेकिन उस के दिल की व्यथा मैं समझ रहा था. रोजलिन शायद उसे कभी न मिले, लेकिन दिल ही तो है, उस पर किस का जोर चला है.
लेखक- डा. अशोक बंसल
मैं ने बहुत कोशिश की उस के नाम को याद कर सकूं. असफल रहा. इंग्लिश वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उस के नाम को मानो बनाया गया था. यह उस का कुसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है. वह भी चैक नागरिक था. वेरिवी के शानदार शौपिंग कौंप्लैक्स की एक बैंच पर बैठा था. 70-80 वर्ष के मध्य का रहा होगा.
आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना शुरू किया था. धरती की गरमी को आज भी विराम नहीं लगा है. इस धरती में समाए सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है. शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं. नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनीअपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाए यहां जीवन जी रहे हैं.
बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज कदमों से गुजरती गोरी मेमों को कनखियों से निहारतेनिहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी. भारत, पाकिस्तान, लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था. एकजैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आंखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पड़ोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया. स्पेन का हो नहीं सकता, इटली का है नहीं, तो फिर कहां का. तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आ कर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्द न पड़ा. गोरा चला गया, तो मैं अपनेआप को न रोक पाया.
मैं ने बूढ़े की आंखों में आंखें डालते बड़ी विनम्रता से हिंदुस्तानी इंग्लिश में पूछा, ‘‘आप किस देश से हैं?’’
मेलबर्न में बसे मेरे मित्र ने मुझे समझा दिया था कि परदेश में अपरिचितों से बिना जरूरत बात करने से बचना चाहिए. लेकिन पड़ोसी गोरे ने जिस सहजता और आत्मीयता से मेरे सवाल का जवाब दिया था उस से मेरे सवालों में गति आ गई. उस ने अपने देश चेकोस्लोवाकिया का नाम उच्चारित किया तो मैं ने उस का नाम पूछा. नाम काफी लंबा था. मेरे लिए उसे बोलना संभव नहीं. सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं. सो, मैं उसे चैक के नाम से उस का परिचय आप से कराऊंगा.
उस की इंग्लिश आस्ट्रेलियन थी. पर वह संभलसंभल कर बोल रहा था ताकि मैं समझ सकूं.मेरे 2 सवालों के बाद चैक ने मुझ में दिलचस्पी लेनी शुरू की, ‘‘आप तो इंडियन हैं.’’ उस की आवाज में भरपूर आत्मविश्वास था.
मेरे देश की पहचान उस ने बड़ी सरलता से और त्वरित की, इसे जान कर मुझे गर्व हुआ और खुशी भी. मेरी दिलचस्पी बूढ़े चैक में बढ़ती गई, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’
‘‘एल्टोना,’’ उस ने जवाब दिया. दरअसल, मेलबर्न में 10 से
15 किलोमीटर की दूरी पर छोटेछोटे अनेक उपनगर हैं. एल्टोना उन में एक है. उपनगर वेरिवी, जहां हम चैक से बतिया रहे थे, एल्टोना से 10 किलोमीटर दूर है.
चैक खानेपीने के सामान को खरीदने के लिए अपनी बस्ती के बाजार के बजाय
10 किलोमीटर की दूरी अपनी कार में तय करता है. पैट्रोल पर फुजूलखर्ची करता है. वक्त की कोई कीमत चैक के लिए नहीं क्योंकि वह रिटायर्ड जिंदगी जी रहा है. लेकिन सरकार से मिलने वाली पैंशन
ये भी पढ़ें- Hindi Kahani Nithalo ke WhatsApp Group
चैक की दरियादिली कहें या उस का शौक, मैं ने सोचा कि अपनी जिज्ञासा को चैक से शांत करूं.
तभी सामने की दुकान से मेरी पत्नी को मेरी ओर आते देख चैक बोला, ‘‘आप की पत्नी?’’
मैं ने मुसकराते कहा, ‘‘आप ने एक बार फिर सही पहचाना.’’
चैक अपने अनुमान पर मेरी मुहर लगते देख थोड़ी देर इस प्रकार प्रसन्न दिखाई दिया मानो किसी बालक द्वारा सही जवाब देने पर किसी ने उस की पीठ थपथपाई हो.
‘‘आप कितने समय से साथ रह रहे हैं?’’ उस ने पूछा.‘‘40 वर्ष से,’’ मैं ने कहा. वह बोला, ‘‘आप समय के बलवान हैं.’’
मुझे यह कुछ अटपटा लगा. पत्नी के साथ रहने को वह मेरे समय से क्यों जोड़ रहा था, जबकि यह एक सामान्य स्थिति है. इस के साथ ही मेरी जबान से सवाल निकल पड़ा, ‘‘और आप की पत्नी?’’
मेरा इतना पूछना था कि चैक के माथे पर तनाव उभर आया. चैक की आंखों ने क्षणभर में न जाने कितने रंग बदले, मुझे नहीं मालूम. पलकें बारबार भारी हुईं, पुतलियां कई बार ऊपरनीचे हुईं. मैं कुछ अनुमान लगाऊं, इस से पहले चैक के भरेगले से स्वर फूटे, ‘‘थी, लेकिन अब वह वेरिवी में किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है.’’
मैं चैक के और करीब खिसक आया. उस के कंधे पर मेरा हाथ कब चला गया, मुझे नहीं मालूम. चैक ने इस देश में हमदर्दी की इस गरमी को पहले कभी महसूस नहीं किया था. उस ने मन को हलका करने की मंशा से कहा, ‘‘हम 30 साल साथसाथ रहे थे.’’
मैं ने देखा, यह बात कहते चैक के होंठ कई बार किसी बहेलिया के तीर लगे कबूतर के पंखों की तरह फड़फड़ाए थे.
‘‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’’ मुझ से रुका न गया. शब्द उस के मुंह में थे, पर नहीं निकले. गला रुंध आया था. उस ने हाथों से जो इशारे किए उस से मैं समझ गया. मानो कह रहा हो, सब समयसमय का खेल है. मगर, मेरी जिज्ञासा मुझ पर हावी थी.
मैं ने अगला सवाल आगे बढ़ा दिया, ‘‘आप का कोई झगड़ा हुआ था?’’ ‘‘ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था,’’ वह बोला, ‘‘वह एक दिन मेरे पास आई और बोली, ‘चैक, आई एम सौरी, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी. मैं ने और स्टीफन ने एकसाथ रहने का फैसला किया है.’ फिर वह चली गई.’’
‘‘आप ने उसे रोका नहीं?’’ ‘‘मैं कैसे रोकता, यह उस का फैसला था. यदि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रह कर ज्यादा खुश है तो मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए.’’
मैं हैरानी से उसे देख रहा था. ‘‘लेकिन हां, आप से झूठ नहीं कहूंगा. मैं ने उस के लौटने का इंतजार किया था.’’ वह आगे बोला.
उस की आंखें नम हो रही थीं. वह फिर बोला, ‘‘आखिर, हम लोग 30 साल साथ रहे थे. मुझे हर रोज उसे देखने की आदत पड़ गई थी,’’ हाथ के इशारे से बैंच के सामने वाली दुकान की ओर संकेत करते हुए उस ने कहा, ‘‘इस दुकान में हम लोग अकसर आते थे. यह उस की पसंदीदा दुकान थी.’’
मैं समझ गया कि वेरिवी के शौपिंग कौंपलैक्स में वह उस दुकान के सामने की बैंच पर क्यों बैठता है.
मैं ने उस से पूछा, ‘‘यहां उस से मुलाकात होती है?’’
‘‘मुलाकात नहीं कह सकते. वह स्टीफन के साथ यहां आती थी. बहुत खुश नजर आती थी. मैं उसे यहीं से देख लिया करता था. उसे देख कर लगता था कि उन दोनों को किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है. वह खुश थी. लेकिन…’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘पिछली बार मैं ने उसे देखा था तो वह अकेली थी.’’
मैं ने देखा कि रोजलिन के चेहरे पर गहरी उदासी उतर आई थी. कुछ परेशान लग रही थी. उस ने मुझे देख लिया था. हमारी नजरें मिलीं, मगर वह बच कर निकल जाना चाहती थी. मैं ने आगे बढ़ कर अनायास ही उस का हाथ थाम लिया था, पूछा था, ‘कैसी हो?’ उस ने मेरी आंखों में देखा था, मगर कुछ बोल नहीं पाई थी. उस के हाथ फड़फड़ा कर रह गए थे. वह हाथ छुड़ा कर चली गई थी. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता था कि वह ठीक तो है. अब जब वह मिलेगी, तो पूछूंगा कि वह खुश तो है.’’
‘‘आप की यह मुलाकात कब हुई थी?’’ ‘‘करीब 2 साल पहले.’’
उस की आंखें डबडबा रही थीं और मैं हैरत से उसे देख रहा था. वह पिछले 2 साल से इस बैंच पर बैठ कर इंतजार कर रहा था ताकि वह उस से पूछ सके कि ‘वह खुश तो है.’
उस दिन मैं ने उस के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कामना की थी कि उस का इंतजार खत्म हो.
मैं अपने देश लौट आया था. मगर चैक मेरे दिमाग पर दस्तक देता रहा. बहुत से सवाल मेरे मन में कौंधते रहे. क्या उस की मुलाकात हुई होगी? क्या रोजलिन उस को मिल गई होगी या वह उसी बैंच पर आज भी उस का इंतजार कर रहा होगा?
मेरे लिए अनजाना था वह, लेकिन उस के दिल की व्यथा मैं समझ रहा था. रोजलिन शायद उसे कभी न मिले, लेकिन दिल ही तो है, उस पर किस का जोर चला है.
Hindi Short Story : मन के बंधन |
लेखक- डा. अशोक बंसल
मैं ने बहुत कोशिश की उस के नाम को याद कर सकूं. असफल रहा. इंग्लिश वर्णमाला के सभी अक्षरों को बिखेर कर उस के नाम को मानो बनाया गया था. यह उस का कुसूर न था. चेकोस्लोवाकिया में हर नाम ऐसा ही होता है. वह भी चैक नागरिक था. वेरिवी के शानदार शौपिंग कौंप्लैक्स की एक बैंच पर बैठा था. 70-80 वर्ष के मध्य का रहा होगा.
यह बात ज्यादा पुरानी नहीं. आस्ट्रेलिया आए मुझे एक माह ही तो हुआ था. म्यूजियम और घूमनेफिरने की कई जगहों की घुमक्कड़ी हो गई, तो परदेश के अनजान चेहरों को निहारने में ही मजा आने लगा. आभा बिखेरते शहर मेलबर्न के उपनगर वेरिवी के इस वातानुकूलित भव्य मौल में जब मैं चहलकदमी करतेकरते थक गया, तो बरामदे में पड़ी एक बैंच पर जा बैठा. पास में एक छहफुटा गोरा पहले से बैठा था. गोरे की आंखों की चमक गायब थी, खोईखाई आंखें मानो किसी को तलाश रही थीं.
ये भी पढ़ें- I Hate har Hindi kahnai
आस्ट्रेलिया की धरती ने डेढ़ सौ साल पहले सोना उगलना शुरू किया था. धरती की गरमी को आज भी विराम नहीं लगा है. इस धरती में समाए सोने की चमक ने परदेशियों को लुभाने का सिलसिला सदियों से बनाए रखा है. शानदार और संपन्न महाद्वीप में लोग सात समंदर पार कर चारों दिशाओं से आ रहे हैं. नतीजा यह है कि सौ से ज्यादा देशों के लोग अपनीअपनी संस्कृतियों को कलेजे से लगाए यहां जीवन जी रहे हैं.
बैंच पर बैठा मैं इधर से उधर तेज कदमों से गुजरती गोरी मेमों को कनखियों से निहारतेनिहारते सोचने लगता था कि वे किस देश की होंगी. भारत, पाकिस्तान, लंका और चीन के लोगों की पहचान करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी. पर सैकड़ों देशों के लोगों की पहचान करना सरल काम न था. एकजैसी लगने वाली गोरी मेमों को देख कर जब आंखों में बेरुखी पैदा हुई तो बैंच पर बैठे पड़ोसी के देश की पहचान करने की पहेली में मन उलझ गया. स्पेन का हो नहीं सकता, इटली का है नहीं, तो फिर कहां का. तभी एक गोरे ने मेरे पड़ोसी बूढ़े के पास आ कर ऐसी विचित्र भाषा में बतियाना शुरू किया कि मेरे पल्ले एक शब्द न पड़ा. गोरा चला गया, तो मैं अपनेआप को न रोक पाया.
मैं ने बूढ़े की आंखों में आंखें डालते बड़ी विनम्रता से हिंदुस्तानी इंग्लिश में पूछा, ‘‘आप किस देश से हैं?’’
मेलबर्न में बसे मेरे मित्र ने मुझे समझा दिया था कि परदेश में अपरिचितों से बिना जरूरत बात करने से बचना चाहिए. लेकिन पड़ोसी गोरे ने जिस सहजता और आत्मीयता से मेरे सवाल का जवाब दिया था उस से मेरे सवालों में गति आ गई. उस ने अपने देश चेकोस्लोवाकिया का नाम उच्चारित किया तो मैं ने उस का नाम पूछा. नाम काफी लंबा था. मेरे लिए उसे बोलना संभव नहीं. सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं. सो, मैं उसे चैक के नाम से उस का परिचय आप से कराऊंगा.
उस की इंग्लिश आस्ट्रेलियन थी. पर वह संभलसंभल कर बोल रहा था ताकि मैं समझ सकूं.मेरे 2 सवालों के बाद चैक ने मुझ में दिलचस्पी लेनी शुरू की, ‘‘आप तो इंडियन हैं.’’ उस की आवाज में भरपूर आत्मविश्वास था.
मेरे देश की पहचान उस ने बड़ी सरलता से और त्वरित की, इसे जान कर मुझे गर्व हुआ और खुशी भी. मेरी दिलचस्पी बूढ़े चैक में बढ़ती गई, ‘‘आप कहां रहते हैं?’’
‘‘एल्टोना,’’ उस ने जवाब दिया. दरअसल, मेलबर्न में 10 से
15 किलोमीटर की दूरी पर छोटेछोटे अनेक उपनगर हैं. एल्टोना उन में एक है. उपनगर वेरिवी, जहां हम चैक से बतिया रहे थे, एल्टोना से 10 किलोमीटर दूर है.
चैक खानेपीने के सामान को खरीदने के लिए अपनी बस्ती के बाजार के बजाय
10 किलोमीटर की दूरी अपनी कार में तय करता है. पैट्रोल पर फुजूलखर्ची करता है. वक्त की कोई कीमत चैक के लिए नहीं क्योंकि वह रिटायर्ड जिंदगी जी रहा है. लेकिन सरकार से मिलने वाली पैंशन
15 सौ डौलर में गुजरबसर करने वाला फुजूलफर्ची करे, यह मेरी समझ से बाहर था. इस पराई धरती पर रहते हुए मुझे मालूम पड़ गया था कि यहां एकएक डौलर की कीमत है.
ये भी पढ़ें- Hindi Kahani Nithalo ke WhatsApp Group
तभी सामने की दुकान से मेरी पत्नी को मेरी ओर आते देख चैक बोला, ‘‘आप की पत्नी?’’
मैं ने मुसकराते कहा, ‘‘आप ने एक बार फिर सही पहचाना.’’
चैक अपने अनुमान पर मेरी मुहर लगते देख थोड़ी देर इस प्रकार प्रसन्न दिखाई दिया मानो किसी बालक द्वारा सही जवाब देने पर किसी ने उस की पीठ थपथपाई हो.
‘‘आप कितने समय से साथ रह रहे हैं?’’ उस ने पूछा.‘‘40 वर्ष से,’’ मैं ने कहा. वह बोला, ‘‘आप समय के बलवान हैं.’’
मुझे यह कुछ अटपटा लगा. पत्नी के साथ रहने को वह मेरे समय से क्यों जोड़ रहा था, जबकि यह एक सामान्य स्थिति है. इस के साथ ही मेरी जबान से सवाल निकल पड़ा, ‘‘और आप की पत्नी?’’
मेरा इतना पूछना था कि चैक के माथे पर तनाव उभर आया. चैक की आंखों ने क्षणभर में न जाने कितने रंग बदले, मुझे नहीं मालूम. पलकें बारबार भारी हुईं, पुतलियां कई बार ऊपरनीचे हुईं. मैं कुछ अनुमान लगाऊं, इस से पहले चैक के भरेगले से स्वर फूटे, ‘‘थी, लेकिन अब वह वेरिवी में किसी दूसरे पुरुष के साथ रहती है.’’
मैं चैक के और करीब खिसक आया. उस के कंधे पर मेरा हाथ कब चला गया, मुझे नहीं मालूम. चैक ने इस देश में हमदर्दी की इस गरमी को पहले कभी महसूस नहीं किया था. उस ने मन को हलका करने की मंशा से कहा, ‘‘हम 30 साल साथसाथ रहे थे.’’
मैं ने देखा, यह बात कहते चैक के होंठ कई बार किसी बहेलिया के तीर लगे कबूतर के पंखों की तरह फड़फड़ाए थे.
‘‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’’ मुझ से रुका न गया. शब्द उस के मुंह में थे, पर नहीं निकले. गला रुंध आया था. उस ने हाथों से जो इशारे किए उस से मैं समझ गया. मानो कह रहा हो, सब समयसमय का खेल है. मगर, मेरी जिज्ञासा मुझ पर हावी थी.
मैं ने अगला सवाल आगे बढ़ा दिया, ‘‘आप का कोई झगड़ा हुआ था?’’ ‘‘ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था,’’ वह बोला, ‘‘वह एक दिन मेरे पास आई और बोली, ‘चैक, आई एम सौरी, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी. मैं ने और स्टीफन ने एकसाथ रहने का फैसला किया है.’ फिर वह चली गई.’’
‘‘आप ने उसे रोका नहीं?’’ ‘‘मैं कैसे रोकता, यह उस का फैसला था. यदि वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ रह कर ज्यादा खुश है तो मुझे बाधा नहीं बनना चाहिए.’’
मैं हैरानी से उसे देख रहा था. ‘‘लेकिन हां, आप से झूठ नहीं कहूंगा. मैं ने उस के लौटने का इंतजार किया था.’’ वह आगे बोला.
उस की आंखें नम हो रही थीं. वह फिर बोला, ‘‘आखिर, हम लोग 30 साल साथ रहे थे. मुझे हर रोज उसे देखने की आदत पड़ गई थी,’’ हाथ के इशारे से बैंच के सामने वाली दुकान की ओर संकेत करते हुए उस ने कहा, ‘‘इस दुकान में हम लोग अकसर आते थे. यह उस की पसंदीदा दुकान थी.’’
मैं समझ गया कि वेरिवी के शौपिंग कौंपलैक्स में वह उस दुकान के सामने की बैंच पर क्यों बैठता है.
मैं ने उस से पूछा, ‘‘यहां उस से मुलाकात होती है?’’
‘‘मुलाकात नहीं कह सकते. वह स्टीफन के साथ यहां आती थी. बहुत खुश नजर आती थी. मैं उसे यहीं से देख लिया करता था. उसे देख कर लगता था कि उन दोनों को किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नहीं है. वह खुश थी. लेकिन…’’ वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘पिछली बार मैं ने उसे देखा था तो वह अकेली थी.’’
मैं ने देखा कि रोजलिन के चेहरे पर गहरी उदासी उतर आई थी. कुछ परेशान लग रही थी. उस ने मुझे देख लिया था. हमारी नजरें मिलीं, मगर वह बच कर निकल जाना चाहती थी. मैं ने आगे बढ़ कर अनायास ही उस का हाथ थाम लिया था, पूछा था, ‘कैसी हो?’ उस ने मेरी आंखों में देखा था, मगर कुछ बोल नहीं पाई थी. उस के हाथ फड़फड़ा कर रह गए थे. वह हाथ छुड़ा कर चली गई थी. मैं सिर्फ इतना जानना चाहता था कि वह ठीक तो है. अब जब वह मिलेगी, तो पूछूंगा कि वह खुश तो है.’’
‘‘आप की यह मुलाकात कब हुई थी?’’ ‘‘करीब 2 साल पहले.’’
उस की आंखें डबडबा रही थीं और मैं हैरत से उसे देख रहा था. वह पिछले 2 साल से इस बैंच पर बैठ कर इंतजार कर रहा था ताकि वह उस से पूछ सके कि ‘वह खुश तो है.’
उस दिन मैं ने उस के कंधे पर सहानुभूति से हाथ रख कामना की थी कि उस का इंतजार खत्म हो.
मैं अपने देश लौट आया था. मगर चैक मेरे दिमाग पर दस्तक देता रहा. बहुत से सवाल मेरे मन में कौंधते रहे. क्या उस की मुलाकात हुई होगी? क्या रोजलिन उस को मिल गई होगी या वह उसी बैंच पर आज भी उस का इंतजार कर रहा होगा?