कुंवर बेचैन शायरी इन हिंदी |
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मौत तो आनी है तो फिर मौत का क्यूँ डर रखूँ
ज़िंदगी आ तेरे क़दमों पर मैं अपना सर रखूँ
राहों से जितने प्यार से मंज़िल ने बात की
यूँ दिल से मेरे आप के भी दिल ने बात की
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हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए
ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए
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शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई सी तुम
ज़िंदगी है धूप, तो मद-मस्त पुर्वाई सी तुम
चाहे महफ़िल में रहूँ चाहे अकेले में रहूँ
गूँजती रहती हो मुझ में शोख़ शहनाई सी तुम
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ये लफ़्ज़ आइने हैं मत इन्हें उछाल के चल
अदब की राह मिली है तो देख-भाल के चल
बड़ा उदास सफ़र है हमारे साथ रहो
बस एक तुम पे नज़र है हमारे साथ रहो
कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
आप कहियेगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई
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अपनी सियाह पीठ छुपाता है आइना
सब को हमारे दाग़ दिखाता है आइना
आज जो ऊँचाई पर है क्या पता कल गिर पड़े
इतना कह के ऊँची शाख़ों से कई फल गिर पड़े
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सुनो अब यूँ ही चलने दो न कोई शर्त बाँधो
मुझे गिर कर सँभलने दो न कोई शर्त बाँधो
उँगलियाँ थाम के ख़ुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे