बशीर बद्र की नज़्मों में मोहब्बत का दर्द समाया हुआ है। उनकी शायरी का एक-एक लफ़्ज़ इसका गवाह है। Bashir badr shayari
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते
पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
दिल उजड़ी हुई इक सराये की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते
मोहब्बत के शायर हैं जिगर मुरादाबादी
इक लफ़्ज़-ए-मुहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फ़ैले तो ज़माना है
हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हंसने को ज़माना है
ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है
जिगर मुरादाबादी शायरी
वो हुस्न-ओ-जमाल उन का, ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है, मरने का ज़माना है
अश्क़ों के तबस्सुम में, आहों के तरन्नुम में
मासूम मुहब्बत का मासूम फ़साना है
क्या हुस्न ने समझा है, क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की, ठोकर में ज़माना है
या वो थे ख़फ़ा हमसे या हम थे ख़फ़ा उनसे
कल उनका ज़माना था, आज अपना ज़माना है
Faiz Ahmad FaizPC: wikipedia
इस ग़ज़ल में यह बानगी देखिए...
राज़े-उल्फ़त छुपा के देख लिया
दिल बहुत कुछ जला के देख लिया
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
वो मिरे हो के भी मेरे न हुए
उनको अपना बना के देख लिया
ये भी पढ़ें: Best of Khumar Barabankvi 2
आज उनकी नज़र में कुछ हमने
सबकी नज़रें बचा के देख लिया
'फ़ैज़' तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी
इश्क़ को आज़मा के देख लिया
आस उस दर से टूटती ही नहीं
जा के देखा, न जा के देख लिया
Nida Fazali shayar निदा फ़ाज़ली
मोहब्बत को निदा ज़िंदगी की पाठशाला के रूप में देखते हैं, इस ग़ज़ल में उन्होंने महबूब और मोहब्बत दोनों पर बहुत खुलकर बात की।
होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
उनसे नज़रें क्या मिलीं रोशन फ़िज़ाएं हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है
खुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आंखों ने बताया मैकशी क्या चीज़ है
हम लबों से कह न पाए उनसे हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है
shahryar ki shayari
shahryarPC: social media
बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको
बेताब हैं और इश्क़ का दावा नहीं हमको
आवारा हैं और दश्त का सौदा नहीं हमको
ग़ैरों की मोहब्बत पे यक़ीं आने लगा है
यारों से अगरचे कोई शिकवा नहीं हमको
नैरंगिए-दिल है कि तग़ाफुल का करिश्मा
क्या बात है जो मेरी तमन्ना नहीं हमको
या तेरे अलावा भी किसी शै की तलब है
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हमको
या तुम भी मदावाए-अलम कर नहीं सकते
या चारागरो फ़िक्रे-मुदावा नहीं हमको
यूं बरहमिए-काकुले-इमरोज से खुश हैं
जैसे कि ख़्याले-रुख़े-फ़र्दा नहीं हमको