सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हिंदी कहानी चक्रव्यूह : ससुराल वालों ने इरा को शहर क्यों Hindi Story Chakravyuh

हिंदी कहानी चक्रव्यूह : ससुराल वालों ने इरा को शहर क्यों
Hindi Story Chakravyuh


हिंदी कहानी चक्रव्यूह ससुराल वालों ने इरा को शहर क्यों नहीं लौटने दिया?

इरा ने विधवा लिबास में अपनी इच्छाएं दबा दी थीं. समाज और संस्कारों की लाज रखते हुए तीजत्योहार, शादीब्याह सब से उस का नाता टूट चुका था लेकिन आज सब बदल गया था.
रश्मि





गीले शरीर पर पतली सी धोती लपेटे, मर्दों के सैलूनों में झांकती चलती इरा, दहलीज पर खड़ी हो, वहीं बाईं ओर पड़े तांबे के लोटे में से थोड़ा जल उंगलियों पर डाल खुद पर छिड़कती. यह शुद्धीकरण रास्ते की गंदगी से भी होता और अपने मन की अशुद्धि से भी. मन की अशुद्धि क्या थी, यह इरा नहीं जानती थी, पर लोग जानते थे. कहते थे, विधवा है फिर भी तालाब पर नहाने जाती है, इधरउधर झांकती है, जवान है, विधवा है, घर पर रहे. पति फौज में था, देशसेवा में जान दे दी, पर इस से इतना भी नहीं होता कि गांवसमाज के संस्कारों की लाज रखे.




Latest Hindi Story Chakravyuh,
इरा सब सुनती और मन ही मन हंसती, रो भी सकती थी पर उस से क्या हो जाता. लोगों को वह दयनीय लगती थी पर खुद को नहीं. इरा का परिवार शहर में रहता था. इरा भी परिवार के साथ ही रहती थी. शहरी परिवेश में पलीबढ़ी इरा ने स्नातक तक की पढ़ाई कर ली थी. आगे पढ़ना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं पाया. इरा के पिता का पूरा परिवार गांव में रहता था. न जमीन की कमी थी न रुपएपैसों की. इरा के दादा ने इरा के पिता पर दबाव डाल कर उसे गांव में ही ब्याह लिया. उन का कहना था, लड़का अच्छा है, घरपरिवार अच्छा है, किसी चीज की कोई कमी नहीं है. संस्कारों में दबे मांबाप चाह कर भी मना नहीं कर पाए. यही संस्कार इरा के आड़े आ गए. सो, वह एक फौजी की पत्नी बन गांव आ गई.






इरा पहले भी गांव आतीजाती रही थी, पर अब यहीं उस की जिंदगी थी और यहीं उसे जीना था. पति का प्यार शायद उसे गांव के रीतिरिवाजों में ढाल भी लेता पर वह तो गोलियों का शिकार हो इरा को जल्दी ही अकेला छोड़ गया. ससुराल वालों ने इरा को शहर लौटने नहीं दिया. इरा घिर चुकी थी. कभीकभी उसे लगता जैसे वह एक चक्रव्यूह में जी रही है और इस से निकलने का एक भी रास्ता वह नहीं जानती. इरा के पास करने के लिए कुछ भी नहीं था. बेमन से सारा दिन पूजापाठ का ढोंग करती और कभी प्रसाद तो कभी कुछ रसोई से चुरा कर खा लेती. वह विधवा थी, इसलिए उसे सादा खाना दिया जाता, दालरोटी या दलियाखिचड़ी. कहते हैं इस से भावनाएं जोर नहीं मारतीं. मीठाचटपटा खाने से पथभ्रष्ट होने का भय रहता है. इरा सब सुनती और हंसती. जैसेतैसे 2 साल बीते, तीजत्योहार, शादीब्याह आते और जाते, पर इरा का जीवन तो थम चुका था.

Hindi Story Chakravyuh,
घर में सासससुर और इरा बस 3 जने थे. सासससुर को कुछ तो जवान बेटे के न रहने का गम था और कुछ इरा के व्यवहार की नाराजगी. वे चुप ही रहते और थोड़े खिन्न भी. इरा अपनी मुक्ति के मार्ग ढूंढ़ रही थी. कटी पतंगों को भी इधर से उधर फुदकतेउड़ते देखती तो उन से ईर्ष्या करती. काश, वह भी जानवर होती. इंसान हो कर भी क्या हो रहा था. क्यों जी रही थी वह, आगे क्या होना है, क्या करना है कुछ पता नहीं था या कुछ और था ही नहीं. होने के लिए था तो बस एक अंतहीन इंतजार, वह भी किस चीज का, पता नहीं.









पड़ोस में 4 मकान छोड़ कर इरा के ससुर के चचेरे भाई का परिवार रहता था. दोनों परिवारों का आपस में कोई मेलमिलाप नहीं था पर कोई बैर भी नहीं था. चचेरे भाई के 4 बेटे और 1 बेटी का परिवार था. बेटी सब से छोटी थी. 3 भाइयों का ब्याह हो चुका था, और सब की 3-3 लड़कियां थीं. किसी के भी अब तक बेटा पैदा नहीं हुआ था. सो इस परिवार में भी मुर्दनी छाई रहती. चौथा बेटा दिमाग से अपंग था. वह 20 वर्ष के ऊपर था पर उस का दिमाग नहीं पनप पाया था अब तक. कर्मेश दिमाग से 5 साल का बच्चा ही था मानो. यह दुख परिवार वालों को कम नहीं था. 5वीं संतान कनक 14 साल की थी. सुंदर भी हो रही थी और जवान भी. 8वीं तक की पढ़ाई कर चुकी थी और अब भाभियों से घरगृहस्थी सीख रही थी. 1-2 साल बाद उसे ब्याहना भी तो था. बरसात के मौसम में गांव की कच्ची सड़कों व गलियों में कीचड़ कुछ ज्यादा ही होता है. ऐसी ही एक बरसाती सुबह को इरा तालाब से नहा, घर की ओर जा रही थी. हलकी रिमझिम इरा को अच्छी लग रही थी. तेजतेज चलती इरा अचानक ठिठकी. उस ने देखा, तालाब के किनारे कीचड़ में कर्मेश लोटपोट हो, खेल रहा था. पिछली रात घनघोर बारिश थी, जिस से तालाब का पानी काफी चढ़ गया था, और कर्मेश वहीें लोट रहा था. चिकनी मिट्टी से फिसल वह कभी भी भरे तालाब में गिर सकता था. आसपास कोई नहीं था. खोजती नजरों से इरा ने चारों तरफ देखा पर कोई नजर नहीं आया.



Read hindi story Chakravyuh,
बारिश तेज होने लगी. इरा तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करे. उस ने जोर से आवाज लगा कर्मेश को पास बुलाने की कोशिश की. पर कुछ तो बारिश का शोर और कुछ कर्मेश की मस्ती, उस ने इरा की आवाज नहीं सुनी. बहुत पुकारने के बाद भी कर्मेश का ध्यान इरा की ओर नहीं गया. अब इरा को ही कर्मेश के पास जाना पड़ा. फिर कुछ खाने का और उस के साथ खेलने का लालच दे वह उसे अपने साथ ले, घर की ओर चल पड़ी. कर्मेश इरा से बातें किए जा रहा था. कभी अपने दोस्तों के बारे में उसे बताता तो कभी घर में पड़ने वाली डांट और मार के बारे में. इरा का मन न होते हुए भी उसे कर्मेश की बातों में दिलचस्पी लेनी पड़ रही थी. कर्मेश को बहुत अच्छा लग रहा था कोई इतने अपनेपन से और प्यार से उस से बातें कर रहा था, उसे इतना महत्त्व दे रहा था.







इरा के भीगे कपड़े बारिश की बूंदों से भीग कुछ और चिपक रहे थे. कर्मेश दिमाग से भले ही बच्चा था पर था तो एक नौजवान लड़का. इरा अपनेआप में धंस रही थी. जैसेतैसे घर आया. कर्मेश को छोड़ वह आगे बढ़ने लगी, तभी कर्मेश ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा और चिल्लाचिल्ला कर रोने लगा, ‘‘तुम कहां जा रही हो? तुम ने तो कहा था मेरे साथ खेलोगी. चलो, मेरे घर चलो. हम साथ में खेलेंगे.’’ इरा बुरी तरह घबरा गई. कहीं कोई देख ले तो क्या करेगी. उस ने बमुश्किल हाथ छुड़ाया और कहा, ‘‘देखो कर्मेश, अभी बारिश हो रही है. मैं भीगी हुई हूं. तुम जाओ. मैं बाद में आऊंगी.’’

‘‘नहीं, अभी चलो,’’ कर्मेश जिद करता हुआ बोला.

‘‘मैं बाद में आऊंगी. अगर तुम नहीं माने तो मैं गुस्सा हो जाऊंगी और कभी नहीं आऊंगी,’’ जान छुड़ाने की गरज से इरा ने पैंतरा चला जो काम आया.

‘‘पक्का, तुम आओगी बाद में?’’



Romantic kahani,
‘‘हां, आऊंगी…’’ इरा चिढ़ कर गुस्से से बोली और घर की ओर भागी. कर्मेश खुश हो गया, उसे नया साथी मिल गया था. इरा डरतेछिपते घर में घुसी. राहत यह थी किकिसी ने देखा नहीं वरना फिर से दोचार तमगे उस के व्यक्तित्व से जड़ जाते. कपड़े बदल वह अपनी कोठरी में आ गई. नीचे चटाई पर नाश्ता रखा था. सुबह की रसोई सास ही बनाती थीं. इरा बस शाम का खाना पकाती और सब ढकबंद कर अपना भोजन ले अंदर आ जाती. बाद में सास रसोई में जा अपना और सुसर का खाना परोसतीं. इरा ने थाली उघाड़ कर देखी. खाना रात वाला ही था. पर कोई बात नहीं, इरा की पसंद का था.

2 दिन गुजर जाने के बाद वाली सुबह को न जाने क्यों उसे भूख नहीं लग रही थी. कर्मेश के हाथ की गरमी से शायद उस की भूख झुलस गई थी.‘छि…’ अपने मन को धिक्कारती वह एक बार फिर तालाब की ओर नहाने चल दी. उधर, कर्मेश का रोरो कर बुरा हाल था. 2 दिन हो गए थे और इरा अभी तक कर्मेश से मिलने नहीं आई थी. घर वाले बारबार उस से उस के रोने का कारण पूछते और वह रोरो कर इरा को बुलाने के लिए कहता. पहले तो सब ने खूब समझाया, बड़े वाले ने दो थप्पड़ भी जड़े, पर वह ठहरा हठधर्मी, नहीं माना सो नहीं माना. हार कर कर्मेश की मां ने कनक को सब समझाबुझा कर इरा को बुला लाने के लिए भेजा.

‘‘प्रणाम, बड़ी मां,’’ कनक ने इरा की सास का अभिवादन किया. वे हैरान हुईं पर कनक को सामने देख उन्हें अच्छा लगा. कई बार मन की खेती देखभाल के अभाव में सूख जाती है, पर भावनाओं की जरा सी फुहार बालियों में रस भर देती है. उन्होंने पूछा, ‘‘कैसी हो बिटिया? आज कैसे आना हुआ?’’

कनक ने बताया कि कैसे कर्मेश ने रोरो कर सब की नाक में दम कर दिया है और इसीलिए मां ने उसे इरा को बुला लाने के लिए भेजा है. इरा की सास को सुन कर थोड़ा अटपटा तो लगा पर कर्मेश की हालत वह जानती थी. कर्मेश की हरकतों और बातों की वजह से सभी गांव और परिवार उसे बच्चा ही समझते थे. सो, सास ने भी कुछ अन्यथा नहीं लिया और  ‘बच्चा दो घड़ी बहल जाएगा,’ सोच कर इरा को भेज दिया.






Hindi Shayarih's Short Story,
अब तो यह रोज की बात हुई. कनक रोज इरा को बुलाने आती. दोनों परिवारों के बीच खुद ही एक पुल बनता जा रहा था. कुछ गांठें खुल रही थीं, कुछ बंध रही थीं. दोनों में खूब छनती और कर्मेश भी खुश व शांत रहता. विधवा इरा को भी एक काम मिल गया. दूसरों को आसान लगने वाला यह काम इरा के लिए किसी तप से कम नहीं था. लोगों को न उस का कुढ़ताकुचलता मन दिखता न कुदरती निखरता तन. इरा से किसी को हमदर्दी न थी, न ही कोई उस की इज्जत करता. कर्मेश के बहाने वह आती और बड़े से घर का सारा काम करती. बहुओं को एक नौकरानी मिल गई थी. सब से बड़ी फुरसत तो कर्मेश की तरफ से मिली थी. अब किसी को कर्मेश का कोई काम नहीं करना पड़ता था. अब दोनों देवरानीजेठानी (इरा की सास और चचेरी सास) भी खूब बातें करतीं, दोनों का एकदूसरे के बिना मन न लगता था और इन सब की सूत्रधार  निरीह, निरर्थक सी सब की जलीकटी और ताने उलाहने सुनती इरा इन दोनों यानी कनक और कर्मेश के साथ खुश रहती. ‘‘आज तो तीज का त्योहार है,’’ चचेरी सास की बहुएं चहक रही थीं. हर साल ही तो आती है तीज, इरा मन ही मन सोचती. सारी बहुएं सजधज कर तैयार हुईं. आज इरा को आने के लिए मना करवा दिया गया.








‘‘सुहागिनों का त्योहार है, उस का क्या, नजर ही न लगा दे कहीं…’’ बड़की ने बड़प्पन झाड़ा.

‘‘और क्या दीदी, कैसे घूरघूर कर देखती है हमें,’’ छुटकी भी इतराई.

‘‘पर बड़ी मां तो आएंगी न?’’ बड़की ने अपनी सास से पूछा.




Hindi kahani online,
‘‘हांहां, और क्या. कर्मेश को वहीं भेज देते हैं और भाभी को बुलवा लेते हैं. त्योहार अच्छे से मन जाएगा.’’ देवरानी ने संदेशा भेजा, जेठानी को पसंद आया. झटपट तैयार हो, इरा को सौ हिदायतें दे चल दी. चलतेचलते कहा, ‘‘कर्मेश को यहीं भेज देंगे, वरना रोरो कर सब गुड़गोबर कर देगा.’’ वक्त पंख लगा कर उड़ा जा रहा था, पर उन पंखों में रेत भरी थी शायद. इरा दिन ब दिन रहस्य की पोटली बनती जा रही थी. ‘इरा कुछ बदली सी दिखती है,’ सास सोचती और रोज उसे ऊपर से नीचे निहारती. धीरेधीरे उस के माथे की सिकुड़नें उस के बुढ़ापे को बढ़ाने लगीं. जो सोचा है सब गलत हो तो ठीक है. आज कुछ निर्णय कर वह इरा के पास पहुंची और जोर से उस की चोटी खींच, मुंह अपनी तरफ घुमाया और उस के पेट की ओर इशारा करते हुए पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ इरा चुप.

सास को काटो तो खून नहीं. गुस्से और भय के मारे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था. वह इरा के हाथपैर जोड़ने लगी, बोली, ‘‘बता किस का है? कहां गई थी?’’

‘‘मैं कहीं नहीं गई, आप ने ही भेजा था उसे…’’

‘‘मैं ने?’’ सास का सिर चक्करघिन्नी की तरह घूम गया, ‘‘किसे भेजा था मैं ने?’’ उन के सब्र का बांध पूरी बर्बरता से टूटा, वे जोर से चिल्लाईं, ‘‘कर्मेश? वह तो बच्चा है, पागल है…’’

‘‘पर, मैं तो पागल नहीं हूं.’’


बात फैलनी थी, फैल गई. सासससुर घर में कैद हो गए. इरा को न पहले ज्यादा फर्क पड़ता था न अब पड़ता. चाची के परिवार में सब इरा को कोसते, गालियां देते, पर उन्हें बदनामी का कोई डर नहीं था. ‘क्या मालूम किस ने किया है ऐसा काम, कर्मेश ने कुछ किया भी होगा तो उस में अपना ज्ञान तो है नहीं, जरूर उसी ने कुछ बदमाशी की होगी.’ उस घर में कमोबेश सब के जुमले ऐसे ही थे. बहुएं ‘छिछि’ कह नाक सिकोड़ रही थीं.




Best Short Story,
‘‘जो भी हो पार्वती,’’ पास बैठी पड़ोस की मीना ताई बोलीं, ‘‘विधवा के पेट में बेटा है, सालों का अनुभव झूठ नहीं बुलाता, भरोसा न हो तो 9 महीने बाद नतीजा देख लेना.’’ ताई बहुओं को करंट लगा गई थी.






‘‘हुंह, बेटा है, भूल गई होगी खुद की औकात कि विधवा है. न पहले कोई पूछता था, न अब पूछेगा.’’ ताई की बातों में कोई इशारा था जिसे चाची ताड़ तो गई थीं पर संस्कार और समाज का डर सचाई आंख चुराना चाह रहा था. पर ताई का सुझाया लालच मन में गड़ गया था. अचानक इरा उन्हें बेचारी लगने लगी और कर्मेश पूर्ण वयस्क. जो काम तंदुरुस्त भाइयों से नहीं हो पाया वह अपंग, लाचार ने कर दिया. अब तो चाची जबतब इरा का हालचाल पता करतीं. 9 महीने बीते. इरा ने बेटे को जन्म दिया. कर्मेश का हू-ब-हू दूसरा रूप, स्वस्थ और प्यारा बच्चा. इरा बेहद खुश थी, अब कुछ तो था जो उस का था. एक अंतहीन इंतजार अब खत्म हो चला था. खबर हर घर में पहुंची. चाचीसास के घर भी सब ने सुनी. देखने वालों ने बताया था, ‘‘कर्मेश जैसा दिखता है, बड़ा हो कर कर्मेश ही निकलेगा. कर्मेश के मांबाप ने भी सुना और न जाने कहां से ममता हिलोरे लेने लगी, कर्मेश जैसा दिखता है? सच, चलो, जरा देख आएं.’’ पोता पाने की उम्मीद दोनों बुजुर्गों ने छोड़ ही दी थी,



Best hindi kahani,


‘‘यह तो कुदरत ने दिया है. किस ने सोचा था कर्मेश का कोई बच्चा भी होगा पर हुआ, चाहे जैसे भी. अब इरा का बेटा है तो हमारे कर्मेश का ही,’’ दोनों एकदूसरे को समझाने लगे. कोई समाज, कोई दुनिया, रीतिरिवाजों की परवाह न रही दोनों को. बेटेबहुओं ने खूब रोकने की कोशिश की, पर पोता पाने का यह आखिरी सुनहरा मौका उन्होंने नहीं गंवाया. सास का तर्क था, कर्मेश एक तरह से इरा का देवर ही तो है, सो कपड़ा डालने में क्या बुराई है. इस तरह से काले को सफेद कर, इरा को कर्मेश की दुलहन बना घर ले आए. एक विधवा से मां बनी औरत, फिर पत्नी बन समाज में रहने के सभी अधिकार पा गई. अब अपनेअपने सुहाग पर इतराने वाली बहुएं, बेटे वाली मां से ईर्ष्या करतीं. और इरा थूक कर चाटने वाले समाज की दोहरी मानसिकता पर हंस रही थी.





Best hindi kahani, best hindi story, Best Short Story, Family Kahani, hindi kahani, hindi kahani online, hindi short story, Hindi Story, kahani, Online Hindi Kahani, online short story, Romantic kahani, Hindi Shayarih Hindi Kahani, Hindi Shayarih Kahani, Hindi Shayarih's Short Story, Hindi Shayarih's Stories, Sexy Stories, short story,

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे